वन विभाग ने 22 हेक्टेयर भूमि से अतिक्रमण हटाया, 18 गुज्जर परिवारों को किया बेदखल

खबर उत्तराखंड

रामनगर: नैनीताल के रामनगर तराई पश्चिमी वन प्रभाग के आमपोखरा रेंज अंतर्गत तुमड़िया खत्ता क्षेत्र में वन विभाग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 22 हेक्टेयर भूमि को अतिक्रमण मुक्त करवाया. इस क्षेत्र से 18 परिवारों की बेदखली की कार्रवाई की गई. गुरुवार सुबह वन विभाग की टीम ने पुलिस बल के सहयोग से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की. वन विभाग का कहना है कि यह जमीन वन गुज्जर समुदाय के कुछ लोगों द्वारा अवैध रूप से कब्जाई गई थी और खेती की जा रही थी.

विभाग के डीएफओ प्रकाश आर्य ने जानकारी देते हुए बताया कि अतिक्रमणकारियों को पहले नोटिस दिया गया था. उन्हें अपना पक्ष रखने का पूरा मौका भी दिया गया. इसके बावजूद, जब समय सीमा समाप्त हो गई तो विभाग ने कार्रवाई करते हुए पुलिस की मौजूदगी में अतिक्रमण हटाया. डीएफओ ने बताया कि इन परिवारों ने कंजरवेटर स्तर पर अपील की थी, जो खारिज कर दी गई. अपील खारिज होने के बाद करीब 10 दिन का समय दिया गया. लेकिन उस दौरान जमीन खाली नहीं की गई. इसलिए कार्रवाई करनी पड़ी. उन्होंने कहा कि विभाग की कार्रवाई पूरी तरह वैधानिक प्रक्रिया के अंतर्गत की गई.

वहीं दूसरी ओर, बेदखली झेल रहे परिवारों ने इसे अन्याय और पक्षपात करार दिया. अतिक्रमणकारियों में शामिल सफी नामक गुज्जर ने आरोप लगाते हुए कहा कि पूरे प्रदेश में हजारों लोग फॉरेस्ट की जमीन पर बसे हुए हैं. मगर टारगेट सिर्फ उन्हें ही किया जा रहा है. कंजरवेटर के बाद अब हाईकोर्ट में केस दायर किया गया है. हमारा केस 20 मई को हाईकोर्ट में फाइल हो चुका है. बावजूद इसके वन विभाग ने कार्रवाई कर दी. सफी ने कहा कि हम लगातार विभाग से अनुरोध कर रहे थे कि हमारी बात सुनी जाए. लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. हमारी अपील कोर्ट में लंबित है और विभाग ने नियमों की अनदेखी करते हुए हमें उजाड़ दिया.

इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता मुनीष अग्रवाल भी सामने आए. उन्होंने कहा कि यह पूरा इलाका वनाधिकार कानून के अंतर्गत आता है. यहां के लोगों ने व्व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों तरह के दावे कोर्ट में लगाए हुए हैं. ऐसे में जब तक उन दावों का निस्तारण नहीं हो जाता. तब तक किसी भी प्रकार की बेदखली गैरकानूनी मानी जाएगी.

मुनीष अग्रवाल ने आरोप लगाया कि वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की भी अवहेलना की है जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी प्रकार की कार्रवाई से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है. इस कार्रवाई में न तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश माना गया और न ही हाईकोर्ट की सुनवाई का इंतजार किया गया. यह सीधा तानाशाही रवैया है.

उनका कहना है कि यह मामला अब केवल जमीन या कब्जे का नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया के पालन का भी है. लोगों का आक्रोश इस बात को लेकर है कि कानून के स्पष्ट नियम होने के बावजूद कार्रवाई जल्दबाजी में की गई और उनका पक्ष सुना नहीं गया.

उधर वन विभाग का कहना है कि यह जमीन वनभूमि की है. उस पर किसी भी तरह का कब्जा अवैध है. विभाग ने अपने स्तर पर पूरी प्रक्रिया का पालन किया और न्यायालय में पेश दस्तावेजों की समीक्षा के बाद ही कार्रवाई की गई.

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