पीएम कैंडिडेट के लिए खरगे का नाम आगे कर ममता बनर्जी और केजरीवाल ने कौन सा दांव खेला है?

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नई दिल्ली: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद विपक्ष पर 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी करने का दबाव बढ़ गया है. प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को भी अपनी हकीकत पता चल गई है कि अब वो जमीन पर है. जब‍कि इसके पहले इंडिया गठबंधन के लिए कांग्रेस के पास समय नहीं था. हाल ही में दिल्ली में हुई  इंडिया एलायंस की चौथी बैठक में कुल 28 पार्टियां शामिल हुईं. इस बैठक की खास बात यह रही कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को विपक्षी गठबंधन इंडिया एलायंस का प्रधानमंत्री चेहरा बनाए जाने का प्रस्ताव रखकर ऐसा गुगली फेंका है कि जिससे कांग्रेस और बीजेपी दोनों परेशान हो सकती है.

हालांकि बैठक के दौरान इंडिया गठबंधन के सदस्यों के बीच खरगे के पीएम कैंडिडेट बनाने पर सहमति बनती नहीं दिखी. पर यह एक ऐसा तीर है जिसके चलाने के कई मायने हैं. मल्लिकार्जुन खरगे भले पीएम न बन पाएं पर यह जानना जरूरी है कि आखिर उनका नाम आगे क्‍यों बढ़ाया गया.

ममता और केजरीवाल क्यों आगे कर रहे खरगे का नाम

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ही एक मात्र विपक्ष के ऐसे दो चेहरे हैं जिन्हें विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष के लोग भी दबी जबान से स्वीकार करते हैं कि असल में आज की बीजेपी को यही दोनों टक्कर दे सकते हैं. बंगाल और दिल्ली में जिस तरह इन दोनों नेताओं ने बीजेपी को घुसने नहीं दिया है वो इनके नेतृत्व क्षमता और संगठन कौशल का ही कमाल है.
अभी तमाम सर्वे और राजनीतिक विशेषज्ञों का यही कहना है कि दिल्ली हो या पश्चिम बंगाल , बीजेपी के लिए दोनों राज्यों को फतह करना टेढ़ी खीर है. सबसे बड़ी बात यह भी है कि ये दोनों दल कांग्रेस को अपने स्टेट में घुसने नहीं देना चाहते . इंडिया ब्लॉक की बैठक के 2 दिन पहले ही आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल ने पंजाब में कहा लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को सभी 13 सीटों पर चुनाव जिताइये. मतलब साफ है कि पंजाब और दिल्ली में केजरीवाल किसी भी सूरत में कांग्रेस को भाव नहीं देने वाले हैं.
मजेदार बात यह है कि दोनों ही पार्टियों की लोकल इकाइयां अपने अपने आलाकमान से यही कह रही हैं वो गठबंधन से दूर रहें. पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही कई बार अपने आलाकमान से यह अपील कर चुके हैं.दरअसल अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी दोनों ही खुद को पीएम पद का दावेदार समझते रहे हैं.इसलिए दोनों ही नहीं चाहते कि किसी ऐसे शख्स का नाम आगे बढ़ाया जाए जो उनका सही मायने में प्रतिद्वंद्वी हो.

जैसे कांग्रेस में अगर राहुल गांधी का नाम आगे बढ़ा या जेडीयू से नीतीश कुमार का नाम आगे बढ़ा तो फिर ममता बनर्जी या अरविंद केजरीवाल का नाम बहुत पीछे चला जाता. ममता बनर्जी जानती हैं कि अगर पश्चिम बंगाल में ठीक-ठाक सीट आ जाती हैं तो वो खुद ही पीएम पद की दावेदार हो सकती हैं. अगर खरगे का नाम आगे करते हैं या पीएम ही बनाते हैं तो उन्हें कभी भी हटाकर खुद पीएम बनने का चांस मिलने की संभावना रहेगी.इसके साथ ही खरगे का नाम आगे बढ़ाकर एक दलित को पीएम बनाने का जो श्रेय मिलेगा वो अलग से.

खरगे का नाम आगे आने से किस किस को लगा धक्का 

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि खरगे का नाम बैठक में पीएम पद के लिए प्रस्तावित किए जाने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू यादव नाखुश नजर आए. कहा जा रहा है कि दोनों नेता बैठक को बीच में ही छोड़कर चले गए और बैठक के बाद होने वाली पीसी में भी शामिल नहीं हुए. नाराजगी के कारण स्पष्ट दिख रहे हैं. बैठक के पहले जेडीयू और आरजेडी दोनों ही तरफ से सार्वजनिक रूप से यह मांग की गई थी कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए नीतीश कुमार को विपक्ष के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया जाए. हालांकि द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि नीतीश कुमार अपने भाषण को अंग्रेजी में अनुवाद करने के नाम पर भड़क गए. नीतीश मजे हुए नेता हैं मुद्दे को अपने हिसाब से कब और कैसे मोड़ना है अच्छी तरह जानते हैं. मनोज झा हमेशा से ऐसे मौकों पर नीतीश कुमार और लालू यादव के भाषणों का अनुवाद करते रहे हैं. इसमें नई बात कुछ नहीं थी. ऐसे में जब मंगलवार को नीतीश कुमार का भाषण ख़त्म हुआ, डीएमके नेता बालू ने मनोज झा से अनुवाद करने के लिए कहा.द हिंदू ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि बालू के कहने पर मनोज झा अनुवाद शुरू ही करने वाले थे, तभी नीतीश कुमार डीएमके नेताओं पर भड़क उठे.

नीतीश कुमार ने कहीं का गुस्सा कहीं निकाला. और हिंदी के नाम पर खेल गए. जबकि उस समय कहीं से भी इसकी जरूरत नहीं थी. पर यही तो मंजे हुए नेता का कमाल होता है. नीतीश ने कहा कि हिंदी देश की राष्ट्रभाषा है और ये भाषा सभी को समझ में आनी चाहिए. नीतीश कुमार अगले कुछ मिनट तक इसी पर बोलते रहे.सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार अंग्रेज़ों और अंग्रेज़ी थोपने के ख़िलाफ़ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में बात करने लगे. कई नेताओं ने नीतीश कुमार को शांत करवाने की कोशिश की. इसके बाद नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों ही के भाषणों का इंग्लिश में अनुवाद नहीं हुआ. तात्कालिक इफेक्ट यह हुआ कि जो नेता आमतौर पर हिंदी बोलते हैं, वो भी इंग्लिश बोलने लगे. इनमें दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का नाम भी शामिल रहे.

खरगे के कंधे पर बंदूक रखकर मलाई खुद खाने की तैयारी

ममता बनर्जी और केजरीवाल की पॉलिटिक्स को हल्के में समझने वाले भूल कर रहे हैं. अगर खरगे के नाम को ही आगे बढ़ाना था तो पहले से ही दोनों कांग्रेस से बातचीत कर सकते थे. पर यहां तो खरगे को पीएम बनाने से ज्यादा उनके नाम की मलाई खाना है. दोनों जानते हैं कि पहले तो कांग्रेस खरगे के नाम को आगे नहीं बढाएगी. अगर नाम को आगे बढ़ा दिया तो एक दलित को पीएम बनाने का श्रेय कांग्रेस के हिस्से में न जाकर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के हिस्से में जाएगा. और दूसरा फायदा यह होगा कि राहुल गांधी की पीएम पद की उम्मीदवारी पर्दे के पीछे चली जाएगी. इसके अलावा दोनों चाहते थे कि किसी भी दूसरे प्रतिद्वंद्वी का नाम आगे बढ़े इसके पहले अपना एक नाम ऐसा दे दो जिस पर कोई भी ऐतराज न जता सके. खरगे का नाम ऐस है कि कोई भी उनके नाम पर विरोध नहीं कर सकेगा. जो भी उनके नाम का विरोध करेगा वो दलितों का विरोधी बन जाएगा. यही कारण रहा कि बैठक में खरगे के मुद्दे पर न बोलकर नीतीश कुमार ने राष्ट्रभाषा हिंदी के साथ भेदभाव की बात कर मुद्दे से साफ बच निकलने की कोशिश की.

खरगे के नाम से कांग्रेस को फायदा ही फायदा

खरगे दक्षिण भारत से हैं . यह हर कोई जानता है कि दक्षिण में कांग्रेस को बड़े समर्थन को उम्मीद है. वैसे भी कांग्रेस जानती है कि उत्तर भारत में उसे न इंडिया गठबंधन में न ज्यादा सीट ही मिलने वाली है और अगर सीट मिल भी गई तो जीतने की गारंटी भी कम है. इसलिए दक्षिण पर भरोसा करके वहीं बढ़िया तरह से खेलना है. खरगे के दलित होने का लाभ कांग्रेस कर्नाटक चुनावों में पहले ही ले चुकी है. 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को दलित वोटों का लाभ मिला है. खरगे को पीएम कैंडिडेट बनाकर कांग्रेस अपने परंपरागत दलित वोटों पर फिर कब्जा जमाने की कोशिश कर सकती है. 2024 का चुनाव में दलित वोटों पर कब्जा करने का सबसे बढ़िया समय हो सकता है. क्योंकि यूपी में मायावती का दलित वोटों का आधार इस बार और खिसक सकता है.एससी कम्युनिटी में मायावती का विकल्प अभी तैयार नहीं है. सपा, कांग्रेस और बीजेपी तीनों ही इस वोट बैंक को ललचाने में लगे हैं. खरगे को पीएम कैंडिडेट बनाकर कांग्रेस यूपी में अगर दलित वोटों को नहीं भी अपना पाई तो दूसरे स्टेट्स में तो इसका फायदा जरूर होगा.

हालांकि खबर है कि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के प्रस्ताव को मल्लिलकार्जुन खरगे ने बहुत विनम्रता से अस्वीकार कर दिया. पर अगर मल्लिकार्जुन के नाम पर आम सहमति बनती है तो कांग्रेस भी बिना देर किए इस प्रस्ताव को स्वीकार कर सकती है. वैसे भी कांग्रेस में यूपीए 1 और यूपीए 2 में मनमोहन सिंह सरकार चलाने का अच्छा खासा अनुभव है. यूपीए के कार्यकाल में पूरा नियंत्रण गांधी फैमिली के हाथ में ही था. कई मौकौं पर हमने देखा है कि राहुल या सोनिया जो चाहते थे वही सरकार में होता था. राहुल गांधी ने तो प्रेस के सामने ही मनमोहन सिंह के एक बिल को फाड़ कर फेंक दिया था. बाद में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को उस बिल को वापस लेना पड़ा था. इसके साथ ही खरगे को पीएम बनाने से राहुल गांधी को पीएम बनाने के सपना भी कभी भी पूरा हो सकने की संभावना बनी रहेगी. कभी भी किसी बात पर खरगे को कुर्सी से हटाकर राहुल गांधी की ताजपोशी हो सकेगी.

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