मंदसौर : दुनिया में सबसे ज्यादा अफीम की खेती (लगभग 85 प्रतिशत) अफगानिस्तान में होती है। वहीं भारत की बात करें तो अफीम की खेती मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में होती है। मध्य प्रदेश में रतलाम, नीमच और मंदसौर – तीन जिलों में अफीम की खेती होती है। मंदसौर जिले में इस काले सोने की खेती की जाती है। लेकिन यहां के अफीम किसानों के सामने पहले तो मौसम की मार से अफीम की खेती को बचाना बड़ी चुनौती होती है, ऊपर से अफीम खाने वाले तोतों से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है। अफीमची तोतों से बचाने के लिए किसानों को खेतों के चारों तरफ बाउंड्रीवाल कर जाली लगानी पड़ती है।
अफीमची तोते उजाड़ रहे फसल
अफीम खाने के शौकीन यह तोते इतने शातिर हैं कि सुबह से लेकर शाम तक अफीम पर ही मंडराते रहते हैं। मौका मिलते ही बड़ी फुर्ती से अफीम को तोड़कर उसे अपनी चोच में दबाकर उड़ जाते हैं और बड़े मजे से अफीम खाते रहते हैं। अफीम किसानों के लिए अफीम की एक-एक बूंद काफी कीमती रहती है। ऐसे में इन अफीमची तोतों की वजह से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। यह तोते इतने शातिर हैं और अफीम चुराने में इतने एक्सपर्ट भी बन गए हैं कि किसान की नजर झुकते ही यह अपनी चोच की सफाई दिखा जाते हैं। अफीम के एक डोडे में कम से कम लगभग 20 से 25 ग्राम अफीम तो निकलती ही है। ऐसे में यह नशेड़ी तोते दिन भर में 30 से 40 बार अफीम चुराते हैं, जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है।
नशेड़ी तोतों के आगे सारी कोशिशें फेल
इन अफीम खाने के शौकीन तोतों का इतिहास अफीम की पैदावार के समय से ही है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। इन तोतों से निपटने के लिए किसान और उनका परिवार दिनभर खेतों की रखवाली करता है, जालियां लगाते हैं, पटाखे फोड़ते हैं, आवाजें लगाते हैं लेकिन बावजूद इन सारे प्रयासों के यह तोते बड़ी शातिरता से अफीम चुराने में सफल हो ही जाते हैं।
अफीम किसानों ने बताई परेशानी
किसान विनोद पाटीदार बताते हैं कि तोते से बचाव के लिए खेत के आसपास नेट लगाई है। तोते वो मिर्ची के बाद अफीम का डोडा खाना पसंद करते हैं। तोते बहुत नुकसान करते हैं। दीपावली के आसपास अफीम की फसल बोई जाती है और उसके बाद मार्च तक अफीम निकालने का काम चलता है। अफीम का लाइसेंस होने पर गांव में मान सम्मान होता है। गांव में पैसे वाला समझते हैं और रिश्ते भी जल्दी हो जाते हैं।
वहीं एक दूसरे किसान कमल कुमार पाटीदार ने बताया कि अफीम की खेती करना बहुत रिस्की काम होता है। पहले खेत की बाउंड्री नहीं करना पड़ती थी, लेकिन अब 50 हजार का खर्चा आता है। खेत के चारों तरफ बाउंड्री कर जाली (नेट) लगानी पड़ती है। अगर आपने जाली (नेट) नहीं लगाई तो चाहे आपका CPS का लाइसेंस हो या किसी भी बीमारी का हो, खेत मे से अगर 5 डोडा भी गायब हो गया तो मुश्किल हो जाती है। अधिकारियों के सख्त नियम हैं। किसान के क्या नियम हैं? हम बोलेंगे कि तोते खा गए। पूरा रिस्क हमारा है।
अफीम की खेती के लिए दिए 54 हजार लाइसेंस
दरअसल, काला सोना कहे जाने वाली अफीम की खेती अपने पूरे यौवन पर है। नारकोटिक्स विभाग ने इस साल अफीम की खेती के लिए 54 हजार लाइसेंस दिए हैं। मंदसौर जिले के इस क्षेत्र को काले सोने का गढ़ कहे जाने वाले मंदसौर-नीमच जिले में सीपीएस सिस्टम आने के बाद से लगातार अफीम पट्टेधारियों की (किसानों) की संख्या बढ़ती जा रही है। पिछले तीन सालों से पट्टों की बड़ी संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। मंदसौर व नीमच जिले के साथ जावरा क्षेत्र में मिलाकर इस साल करीब 54 हजार नियमित व पट्टेधारी किसान हैं, जो अफीम की खेती कर रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार अफीम का उत्पादन भी बढ़ेगा और रकबा भी बढ़ा है।
नारकोटिक्स विभाग का होता है पूरा कंट्रोल
ऐसे में इन 54 हजार अफीम काश्तकारों ने अफीम पर फूल और डोडे आने के साथ ही सुरक्षा को लेकर खेत को ही अपना ठिकाना बना लिया है। मंदसौर क्षेत्र में इन दिनों अफीम की फसल पक गई है, जिसमें से अफीम निकालने का काम चल रहा है। मंदसौर क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा किसानों को अफीम की खेती करने के लाइसेंस दिए जाते हैं। किसान अफीम की खेती को एक बच्चे की तरह पालते हैं। अफीम के डोडे से निकलने वाला तरल पदार्थ, जिसमें मॉर्फिन की मात्रा होती है, जोकि नारकोटिक्स विभाग को जमा करना पड़ती हैं। अफीम की खेती के लिए बेहद सख्त नियम व निर्देश होते हैं। नारकोटिक्स विभाग की निगरानी में होती हैं।
जीवनरक्षक दवाओं से लेकर बनते हैं ड्रग्स
अफीम से निकलने वाले मॉर्फिन से जीवनरक्षक दवाएं बनती हैं। आम आदमी इसके खेतों में जाए तो इसकी महक से ही मदहोश हो सकता है। वहीं अफीम का लोग नशे के रूप में दुरुपयोग करते हैं। क्योंकि अफीम के डोडा (फल) से अफीम के अलावा पोस्ता-दाना भी निकलता है। साथ ही डोडे का छिलका जिसमें भी नशीला पदार्थ होता है, जिसको गलाकर पानी निकाला जाता है। इसमें भी नशा होता है, जिसका हाइवे पर निकलने वाले ट्रक ड्राइवर नशे के लिए सेवन करते हैं। इसलिए जिले में अफीम तस्करी के कई मामलों में NDPS एक्ट के तहत हजारों तस्कर देश की कई जेलों में बंद हैं और सजा काट रहे हैं। इसके दुरुपयोग में तस्कर कई जहरीले पदार्थ (ड्रग्स) को बनाने में उपयोग करते हैं।