नई दिल्ली: अरविंद केजरीवाल के जेल जाने का असर दिखाई पड़ने लगा है. मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव को टाल दिया जाना ऐसा पहला वाकया है. और खास बात ये है कि ये चीज पहली बार दिल्ली के एलजी ऑफिस में महसूस की गई है.
मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव टाले जाने के राजनीतिक निहितार्थ और भी हो सकते हैं, लेकिन उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने आधार तो मुख्यमंत्री की गैरमौजूदगी को ही बनाया है. एलजी ऑफिस की तरह से कहा गया है कि मुख्यमंत्री की सिफारिश के बिना पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति के संबंध में कोई फैसला लेना ठीक नहीं होगा. उप राज्यपाल की सलाहियत है कि मौजूदा हालात में कानून की पवित्रता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखने की कोशिश होनी चाहिये.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जेल से दिल्ली की सरकार चलाने की बात करें, तो उसमें भी राजनीतिक बयानबाजी से ज्यादा का स्कोप नहीं लग रहा है. मेयर चुनाव के लिए जिस तरह मुख्यमंत्री की संस्तुति को महत्व दिया गया है, दिल्ली सरकार के मंत्रियों के साथ अरविंद केजरीवाल की मुलाकात का कोई खास नतीजा नहीं निकल पा रहा है – जेल से सरकार चलाने की बात करें तो मंत्री भी अरविंद केजरीवाल के संदेशवाहक से ज्यादा अपनी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं.
चाहे वे दिल्ली सरकार के मंत्री हों, या पंजाब के मुख्यमंत्री जेल में अरविंद केजरीावाल से मुलाकात के बाद सिर्फ इतना ही बता पा रहे हैं कि जेल में होने के बाद भी दिल्ली के मुख्यमंत्री की एक ही चिंता है – दिल्ली के लोगों को कोई दिक्कत तो नहीं हो रही है.
मुख्यमंत्री की पत्नी सुनीता केजरीवाल का भी अब तक इसी बात पर जोर रहा है कि उनका रोल अरविंद केजरीवाल की मैसेंजर तक ही सीमित है. रामलीला मैदान की रैली से लेकर रांची की रैली तक हर जगह सुनीता केजरीवाल या तो अरविंद केजरीवाल की दिल्ली के लोगों के लिए फिक्र की बात दोहराती हैं, या फिर जेल में उनकी हत्या की आशंका जताती हैं. तिहाड़ जेल में दो गुटों के बीच हिंसक मारपीट के बाद राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भी ऐसी ही आशंका जताई थी.
जो भी परिस्थितियां हैं, उनमें सुनीता केजरीवाल का खुल कर सामने आना, अरविंद केजरीवाल के संदेशवाहक की भूमिका से आगे बढ़ना और दिल्ली की सड़कों पर उतर कर आम आदमी पार्टी के चुनाव कैंपेन का नेतृत्व करना जरूरी हो गया है – देखना होगा, सुनीता केजरीवाल के मोर्चा संभालने का कितना असर होता है.
सुनीता केजरीवाल का मोर्चा संभालना कितना असरदार
आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपना कैंपेन सॉन्ग भी लॉन्च कर दिया है – ‘जेल के जवाब में हम वोट देंगे’. ये रैप फॉर्म में है और इसे लिखा और गाया है तिमारपुर से आप विधायक दिलीप पांडे ने.
आम आदमी पार्टी पहले से ही ‘जेल का जवाब वोट से’ कैंपेन चला रही है, और उसका नेतृत्व गोपाल राय कर रहे हैं. गुजरात के लिए सुनीता केजरीवाल को पहले ही स्टार कैंपेनर बनाया गया था, अब वो दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी के इलेक्शन कैंपेन का नेतृत्व करने जा रही हैं. सुनीता केजरीवाल के साथ साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगते देखे जाने वाले हैं. और पंजाब सहित बाकी राज्यों में भी सुनीता केजरीवाल चुनाव प्रचार करेंगी.
कैंपेन सॉन्ग के लॉन्च के मौके पर मंच पर रखी गई कुर्सियों में एक खाली थी, और उस पर अरविंद केजरीवाल का नाम लिखा हुआ था – और कैंपेन सॉन्ग के अंत में अरविंद केजरीवाल को इंकला जिंदाबाद का नारा लगाते हुए पेश किया गया है.
दरअसल, ये भी दिल्ली के लोगों को संदेश देने की एक कोशिश ही रही. और इसी मौके पर बताया गया कि सुनीता केजरीवाल दिल्ली में आप के चुनाव कैंपेन का नेतृत्व करेंगी.
बताते हैं कि सुनीता केजरीवाल अपना पहला रोड शो कोंडली में करेंगी. पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले इस इलाके के विधायक कुलदीप कुमार विधायक ही लोकसभा उम्मीदवार हैं.
पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के अलावा सुनीता केजरीवाल दिल्ली तीन और भी लोकसभा सीटों पर चुनाव प्रचार करेंगी, जहां से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं – इससे तो ये लगता कि सुनीता केजरीवाल कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए वोट नहीं मांगने वाली है. अभी तक जो बताया गया है, उससे तो यही लगता है.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. चुनावी समझौते के तहत आम आदमी पार्टी पूर्वी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली, दक्षिण दिल्ली और नई दिल्ली लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ रही है, जबकि कांग्रेस उत्तर-पूर्वी दिल्ली, उत्तर-पश्चिम दिल्ली और चांदनी चौक लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में है.
आखिर दिल्ली में चुनावी गठबंधन के बावजूद आम आदमी पार्टी के नेता कांग्रेस उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार से दूर क्यों हैं. क्या आम आदमी पार्टी को किसी बात से परहेज है, या कांग्रेस ही नहीं चाहती कि साझा चुनाव प्रचार हो.
2019 में आप के साथ कांग्रेस का गठबंधन न करने को लेकर शीला दीक्षित का तर्क था कि आम आदमी पार्टी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का नुकसान उठाना पड़ सकता है. तो क्या अब भी कांग्रेस को ऐसा ही लगता है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि दोनों पार्टियां इसलिए साथ चुनाव प्रचार से बच रही हैं क्योंकि पंजाब में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने को लोगों के बीच जाकर कैसे वाजिब ठहराया जाएगा.
जेल से सरकार, लेकिन मेयर चुनाव नहीं
जेल से सरकार चलाने में भले ही कोई संवैधानिक बाधा न हो, भले ही अदालतों से इस पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाएं खारिज होती जा रही हों – लेकिन कैबिनेट मंत्रियों से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जिस तरह मुलाकात हो रही है, भला उसमें क्या बात हो सकती है.
ऐसा भी मौका तो नहीं है कि पास बैठकर अरविंद केजरीवाल मंत्रियों से सलाह मशविरा कर सकें. मुलाकात तो शीशे का आर पार हो रही है, और बातचीत भी इंटरकॉम पर होती है. अब कैबिनेट की मीटिंग तो ऐसे सार्वजनिक तौर पर तो होती नहीं, और वैसे भी ये मुलाकातें तो निजी हैसियत से ही होती हैं. जैसे कोई और कैदी अपने घर-परिवार, रिश्तेदार या वकील से मिलता है.
मेयर और डिप्डी मेयर चुनाव की बात करें तो एमसीडी सचिव की ओर से जारी नोटिस में लिखा है, ‘चूंकि डीएमसी अधिनियम, 1957 (संशोधित 2022) की धारा 77 (ए) के अनुसार पीठासीन अधिकारी का नामांकन अनिवार्य है… इसलिए तय समय पर मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव कराना संभव नहीं हो सकेगा.’
ये नोटिस दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के इस मसले में फैसला लेने के बाद आया है. असल में, पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति का प्रस्ताव मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के माध्यम से उप राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है.
मुख्यमंत्री की संस्तुति के अभाव में पीठासीन अधिकारी के लिए 250 पार्षदों के नाम उप राज्यपाल के पास भेजे गये थे. प्रक्रिया के मुताबिक दिल्ली उप राज्यपाल, मुख्यमंत्री के प्रस्ताव पर ही पीठासीन अधिकारी के नाम को मंजूरी देते हैं. मुख्यमंत्री के न्यायिक हिरासत में जेल में होने के कारण मुख्यमंत्री की तरफ से पीठासीन अधिकारी के नाम की अनुशंसा नहीं हो सकी, और इसे अनिवार्य मानते हुए उप राज्यपाल मंजूरी नहीं दी.
उप राज्यपाल वीके सक्सेना की राय है कि वर्तमान परिस्थितियों में कानून की पवित्रता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखा जाये, लिहाजा गहन विचार-विमर्श के बाद ये निर्णय लिया गया कि मुख्यमंत्री की संस्तुति के बगैर पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति के संबंध में निर्णय लेना उचित नहीं होगा.
मेयर चुनाव टाले जाने को लेकर आम आदमी पार्टी और बीजेपी आमने सामने आ गये हैं. आप का आरोप है कि मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव टाले जाने में बीजेपी की ही भूमिका है, और ये जानबूझ कर टाला गया है ताकि लोकसभा चुनाव के साथ मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव न हो सके.
बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद ये पहला वाकया है, जब उनकी गैरमौजूदगी का साफ तौर पर असर दिखाई पड़ा है. सुनीता केजरीवाल को दिल्ली में चुनाव कैंपेन का नेतृत्व सौंपा जाना भी इससे जुड़ा हुआ लगता है, और आने वाले दिनों में उनकी बढ़ी हुई संभावित भूमिका का संकेत भी है – मुमकिन है और भी व्यावहारिक दिक्कतें आईं तो सुनीता केजरीवाल को अरविंद केजरीवाल के मैंसेजर से आगे बढ़ाते हुए उत्तराधिकारी बना दिया जाये.