उत्तराखंड के जंगलों में आग, एनजीटी ने केंद्र और राज्य सरकार को जारी कर दिया नोटिस

खबर उत्तराखंड

देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग की घटनाओं को स्वतः संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट्स को स्वतः संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, उत्तराखंड के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी को नोटिस जारी किया है। एनजीटी ने इन सभी को मामले में प्रतिवादी बनाया है और उन्हें 19 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई से पहले एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

टीओआई की समाचार रिपोर्ट में नैनीताल में जंगल में लगी आग पर का जिक्र किया गया था। जब स्थिति गंभीर हो गई तब भारतीय वायु सेना को भीमताल झील से पानी लेकर आग बुझाने के लिए एक हेलिकॉप्टर तैनात करना पड़ा। एनजीटी ने कहा कि यह मामला 27 अप्रैल को टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट ”IAF helicopter roped in to douse fire in Nainital as situation worsens in district (नैनीताल में आग बुझाने के लिए वायुसेना के हेलीकॉप्टर को लगाया गया)’ के आधार पर स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज किया गया है।

एनजीटी ने कहा कि यह खबर नैनीताल में लगी भीषण आग से संबंधित है। रिपोर्ट के अनुसार, आग पाइंस क्षेत्र में एचसी कॉलोनी तक पहुंच गई। स्थिति पर काबू पाने के लिए भारतीय वायुसेना के एम-17 हेलीकॉप्टर को काम पर लगाया गया। हेलिकॉप्टर ने भीमताल झील से पानी इकट्ठा करने के लिए बांबी बाल्टी का इस्तेमाल किया और बाद में इसे पाइंस, भूमिधर, ज्योलीकोट, नारायण नगर, भवाली, रामगढ़ और मुक्तेश्वर सहित जिले के विभिन्न क्षेत्रों में धधकते जंगलों पर डाला।

न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य अफरोज अहमद की एनजीटी पीठ ने कहा कि टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि राज्य में जंगल में आग लगने की 31 नई घटनाएं सामने आईं, जिसके परिणामस्वरूप 33.3 हेक्टेयर वन भूमि नष्ट हो गई। एनजीटी ने कहा कि खबरों से पता चलता है कि पिछले साल 1 नवंबर से उत्तराखंड में आग की 575 घटनाएं हुई हैं, जिससे 689.8 हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित हुई है। यह खबर पर्यावरण मानदंडों खासकर वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अनुपालन में लापरवाही का मुद्दा उठाती हैं।

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