सस्पेंशन के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचे रामजी शरण, दाखिल की याचिका, 31 जुलाई को शासन रखेगा पक्ष

खबर उत्तराखंड

देहरादून: उत्तराखंड में सीनियर पीसीएस अफसर रामजी शरण शर्मा ने लंबी लड़ाई लड़ने का निर्णय ले लिया है. PCS अफ़सर रामजी शरण शर्मा ने खुद के खिलाफ की गई कार्रवाई को अनुचित मानते हुए कोर्ट की शरण ली है. अब वे इस प्रकरण में अपना पक्ष हाईकोर्ट में रखने वाले हैं. यह मामला अनुशासनहीनता और काम में लापरवाही से जुड़ा था. जिसके बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के दौरान पीसीएस अफसर के खिलाफ शासन ने कार्रवाई की थी. शासन द्वारा यह कार्रवाई लोकसभा चुनाव के लिए होने वाली मतगणना से ठीक पहले की गई थी.

रामजी शरण ने याचिका की दाखिल, 31 जुलाई को शासन रखेगा पक्ष

पीसीएस अधिकारी रामजी शरण शर्मा ने हाईकोर्ट में रिट पिटीशन दाखिल की है. हालांकि अभी कोर्ट से उन्हें कोई राहत नहीं मिल पाई है. मामले में कोर्ट ने सुनवाई के लिए आगामी 31 जुलाई का दिन मुकर्रर किया है. प्रकरण पर अब शासन को कार्रवाई से जुड़ा पुलिंदा 31 जुलाई को हाईकोर्ट में पेश करना होगा. इस दौरान पीसीएस अधिकारी पर हुई कार्रवाई को लेकर कार्मिक विभाग कोर्ट में एफिडेविट देगा.

जानकारी के अनुसार निलंबित पीसीएस अधिकारी रामजी शरण शर्मा को चार्जशीट सौंपी जा चुकी है. अब प्रकरण पर जांच अधिकारी को जांच के बाद रिपोर्ट देनी है. रामजी शरण शर्मा के कोर्ट जाने के बाद ये मामला अब थोड़ा पेचीदा हो गया है. हाईकोर्ट में आगामी सुनवाई पर काफी कुछ निर्भर करने वाला है.

जिला निर्वाचन अधिकारी सोनिका की शिकायत पड़ी भारी

लोकसभा चुनाव के दौरान ड्यूटी में लापरवाही करने और निर्देशों का पालन नहीं करने को लेकर जिला निर्वाचन अधिकारी सोनिका ने अपर जिलाधिकारी रामजी शरण शर्मा की शिकायत की थी. मामले में शिकायत के बाद विचारोपरान्त भारत निर्वाचन आयोग तक इस मामले को भेजा गया, इसके बाद इलेक्शन कमिशन आफ इंडिया के निर्देश पर शासन ने अपर जिलाधिकारी रामजी शरण शर्मा को निलंबित करने के निर्देश जारी किए थे.

रामजी शरण शर्मा के पक्ष में खुलकर आया PCS संगठन

निलंबित पीसीएस अधिकारी रामजी शरण शर्मा के खिलाफ हुई इस कार्रवाई के बाद पीसीएस संगठन खुलकर उनके पक्ष में आया था. इसके लिए पीसीएस अधिकारियों ने अपर मुख्य सचिव कार्मिक आनंद वर्धन से भी मुलाकात भी की थी. मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से भी मिलकर कार्रवाई को वापस लिए जाने का अनुरोध किया गया था. दरअसल यह कार्रवाई भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर हुई है, लिहाजा इस पर शासन का रोल बैक करना मुमकिन नहीं है. उधर दूसरी तरफ भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर आचार संहिता के दौरान इस कार्रवाई को काफी कठोर माना जा रहा है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि अब इस पूरे प्रकरण की जांच रिपोर्ट भारत निर्वाचन आयोग तक भी भेजी जाएगी. आयोग के संज्ञान में आने के बाद निर्देशों के क्रम में ही इस पर कोई फैसला हो पाएगा.

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