चंपावत: उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा के प्रसिद्ध मां वाराही मंदिर परिसर में पौराणिक बग्वाल मेले का आयोजन हुआ. जिसमें फलों से बग्वाल खेली गई. जिसके साक्षी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी बने. इससे पहले उन्होंने मां वाराही का पूजा अर्चना कर उत्तराखंड की खुशहाली की कामना की.
वाराही बग्वाल मेले को साल 2022 में घोषित किया जा चुका राजकीय मेला
गौर हो कि साल 2022 में चंपावत के प्रसिद्ध देवीधुरा के मां वाराही बग्वाल मेले को राजकीय मेला घोषित किया गया था. इस बार भी आषाढ़ी कौतिक के मौके पर 50 हजार से ज्यादा लोग बग्वाल मेले पहुंचे. जहां दशकों से चली आ रही बग्वाल युद्ध का आयोजन किया गया. जिसमें फूल और फलों से युद्ध को खेला गया.
चारों खामों (बिरादरी) के रणबांकुरों ने फूल और फल से युद्ध किया. इस बार सीएम पुष्कर धामी ने भी मेले में शिरकत की. इस दौरान सीएम धामी ने अपने संबोधन में कहा कि बग्वाल मेला हमारी लोक संस्कृति और परंपराओं का संगम है. ये मेले हमारी संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने के साथ ही संस्कृति का भी संवर्धन करते हैं.
सांस्कृतिक विरासत और पौराणिक स्थलों का किया जा रहा संरक्षण
इसके अलावा उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार देवभूमि की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के साथ ही पौराणिक स्थलों का भी संवर्धन करने का काम कर रही है.
रोप वे की सुविधा से जोड़े जा रहे धार्मिक स्थल
सीएम धामी ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर रोप वे सुविधा विकसित करने पर भी काम किया जा रहा है. मां पूर्णागिरि धाम को रोप वे से जोड़ा जा रहा है. मानसखंड मंदिर माला मिशन के तहत क्षेत्र के तमाम मंदिरों का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है. जिसमें देवीधुरा का मंदिर भी शामिल है.
क्या है मान्यता
ऐतिहासिक बग्वाल मेला यानी आषाढ़ी कौतिक में अतीत में यहां नर बलि देने की प्रथा थी, जो समय के साथ पत्थर युद्ध में तब्दील हुई. साल 2013 में कोर्ट के आदेश के बाद पत्थरों की जगह फूल और फलों से बग्वाल युद्ध खेली जाने लगी. इस युद्ध में एक व्यक्ति के शरीर के बराबर का खून बहाया जाता है.
मान्यता है कि पौराणिक काल में चार खामों के लोग अपने आराध्य मां वाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देते थे. एक बार जब चम्याल खाम की एक वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बलि देने की बारी आई तो वंश नाश के डर से उसने मां वाराही की तपस्या की. जिस पर मां वाराही देवी प्रसन्न हुईं.
माता के प्रसन्न होने पर वृद्धा की सलाह पर चारों खामों के मुखियाओं ने आपस में युद्ध कर एक मानव के बराबर रक्त बहाकर कर पूजा करने की बात स्वीकार ली. उसके बाद से बग्वाल मेले का सिलसिला चला आ रहा है. साल 2022 से पहले तक पत्थरों से बग्वाल युद्ध होता था. जिसमें काफी खून निकलता था, लेकिन कहा जाता है कि कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं होता था.