देहरादून / लखनऊ: यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 19वीं रैंक हासिल करने वाली दीक्षा जोशी ने अपना पहला कैडर उत्तराखंड को चुना था लेकिन उत्तराखंड में वैकेंसी कम होने के कारण उन्हें उत्तराखंड के बजाय उत्तर प्रदेश कैडर एलॉट हुआ , एलबीएस मसूरी से प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उनको पहली पोस्टिंग में उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में शाहाबाद तहसील का डिप्टी कलेक्टर बनाया गया है । जिसका दीक्षा जोशी ने आज चार्ज सम्भाल लिया है ।
दीक्षा जोशी का पारिवारिक परिचय
दीक्षा जोशी मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के मूनाकोट ब्लॉक के सिलोनी गांव की रहने वाली हैं। दीक्षा जोशी दो भाई बहन है उनके पिता सुरेश जोशी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और मां गीता जोशी गृहणी हैं। दीक्षा ने अपनी स्कूली पढ़ाई उतराखंड से की है ,दीक्षा ने पहले कोचिंग ली थी, लेकिन फ़ेल हो जाने के बाद उन्होंने कोचिंग छोड़ दी और पूरी तरह से सेल्फ़ स्टडी पर ध्यान देना शुरू कर दिया, उन्होंने दिन में पढ़ने का समय तय किया और एनसीईआरटी की किताबों के साथ-साथ कुछ और पुस्तकें भी पढ़ीं,उन्होंने ज़्यादा किताबें पढ़ने की बजाय कम किताबें पढ़ीं और उनका बार-बार रिवीज़न जरूर किया जो उन्हें यूपीएससी में सफलता दिलाने में सार्थक सावित हुआ।
दीक्षा को मिली थी 19वीं रैंक
दीक्षा जोशी को यूपीएससी की सिविल सर्विसेज परीक्षा में ऑल इंडिया 19वीं रैंक मिली थी। हालांकि इस परीक्षा को पास करना उनके लिए आसान नहीं था। लेकिन सही स्ट्रैटेजी और नियमित अध्ययन के दम पर उन्होंने इस परीक्षा को पास कर लिया। दीक्षा मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की रहने वालीं हैं। उन्हें 2021 की सिविल सर्विसेज परीक्षा में 19वीं रैंक मिली थी।
पहले दो प्रयासों में दीक्षा को नहीं मिल पाई थी सफलता
दीक्षा ने 10वीं व 12वीं तक की पढ़ाई मल्लिकार्जुन कॉलेज से की है। इसके बाद उन्होंने जौलीग्रांट हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस से एमबीबीएस किया। हालांकि, उनका सपना बचपन से ही सिविल सर्विसेज में नौकरी करने का था। यही वजह थी कि उन्होंने इंटर्नशिप के बाद यूपीएससी की सिविल सर्विसेज की परीक्षा दी। लेकिन पहली दो बार में उनका चयन नहीं हुआ। लेकिन तीसरे प्रयास में उन्होंने सफलता हासिल कर ली और उन्हें 19वीं रैंक मिली।
किस तरह से की दीक्षा ने तैयारी
पहले दो प्रयास में जब दीक्षा को सफलता नहीं मिली तो उन्होंने कोचिंग छोड़ने का फैसला किया। क्योंकि कोचिंग में ज्यादा समय खर्च हो जाने के कारण वह पढ़ाई नहीं कर पाती थीं। जिससे सिलेबस अधूरा रह जाता था। यही वजह है कि उन्होंने सेल्फ स्टडी पर फोकस किया। इसके लिए उन्होंने हर दिन 7 से 8 घंटे की पढ़ाई की। इन 7-8 घंटों के दौरान उन्होंने सिलेबस को डिवाइड कर दिया और उसी हिसाब से परीक्षा की तैयारी में जुट गई और नतीजा ये रहा कि उन्होंने तीसरे अटेंप्ट में ऑल इण्डिया में 19 वीं रैंक हाँसिल कर अपना और अपने परिवार का सपना पूरा कर दिखाया।