देहरादून: अगर आप खाने-पीने के शौकीन हैं तो यह खबर आपके लिए ही है मालसी रोड पर पारंपरिक और स्वादिष्ट भोजन का ढाबा खुल गया है। राजपुर रोड स्थित ‘असली पप्पू ढाबा’ का भव्य शुभारंभ मोनी महाराज जी के कर-कमलों द्वारा हुआ। इस अवसर पर ढाबे के मालिक इंद्रजीत सिंह ने बताया कि यह ढाबा ग्राहकों को पारंपरिक स्वाद और उच्च गुणवत्ता वाले भोजन के साथ विशेष अनुभव प्रदान करेगा। सैलानियों के स्वागत में जुटी उत्तराखंड सरकार उत्तराखंड में रेस्टोरेंट, होटल और ढाबा चौबीसों घंटे खुले रखने की अनुमति भी मिल गई है। बताते चले की उद्घाटन समारोह के दौरान ढाबे के मेन्यू और खासियतों का परिचय कराया गया। उन्होंने बताया कि यहां का खाना न केवल स्वादिष्ट होगा बल्कि ग्राहकों की सेहत का भी ख्याल रखा जाएगा। ढाबा भारतीय परंपरा के अनुरूप व्यंजन पेश करेगा, जिन्हें बुजुर्गों और यात्रियों द्वारा खासा पसंद किया जा रहा है।
उत्तराखंड में बढ़ती पहचान
‘असली पप्पू’ ब्रांड ने अपनी शुरुआत वर्ष 1976 में की थी और आज यह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। देहरादून के प्रतिष्ठित राजपुर रोड पर स्थित यह ढाबा स्थानीय निवासियों और पर्यटकों को ध्यान में रखकर खोला गया है। ढाबे के मालिकों का उद्देश्य स्वादिष्ट और किफायती भोजन उपलब्ध कराना है।
उद्घाटन समारोह में स्थानीय निवासी और शहर के प्रतिष्ठित लोग शामिल हुए। इस दौरान कुलबीर सिंह, गुरदीप सिंह, चौधरी नरदीप सिंह और बांके बिहारी शर्मा जैसे प्रमुख व्यक्तित्व भी उपस्थित रहे।
पर्यटकों के लिए नया आकर्षण
राजपुर रोड, जो पहले से ही पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है, अब ‘असली पप्पू ढाबा’ के साथ और भी खास बन गया है। मसूरी और देहरादून घूमने आने वाले पर्यटक यहां पारंपरिक और स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकेंगे।
मालिकों ने सभी उत्तराखंडवासियों और पर्यटकों को ढाबा पर आने का निमंत्रण देते हुए कहा कि एक बार यहां का स्वाद लेने के बाद ग्राहक बार-बार लौटने के लिए मजबूर होंगे।
रेस्तरां आपको अनुभव देने के लिए इसे ढाबा भी कह सकते हैं आपको अलग-अलग व्यंजन और अनुभव प्रदान करेगा
पप्पू ढाबे का इतिहास (असली पप्पू ढाबा )
1971 में एक छोटी सी चाय की दुकान से सरदार इंद्रजीत सिंह (पप्पू) ने कोसी के पुराने बाईपास के पास अपना व्यवसाय शुरू किया। अपनी कड़ी मेहनत और लगन से सरदार इंद्रजीत सिंह ने एक चाय की दुकान को पप्पू ढाबा में बदल दिया जो उस समय एक शांत और मशहूर ढाबा था। 1984 के दंगों तक यह ढाबा बेहतरीन प्रामाणिक भारतीय भोजन परोसता था जिसके कारण ढाबा नष्ट हो गया। लेकिन बड़े समर्थन और उत्साह के साथ इसने अपनी विरासत को आगे बढ़ाया और इसे फिर से शुरू किया। यह सरदार इंद्रजीत सिंह और उनके परिवार के लिए एक अभूतपूर्व क्षति थी। 1984 के दंगों ने लोगों की मानसिकता को हमेशा के लिए प्रभावित कर दिया लेकिन इसने उन्हें निराश नहीं किया। कुछ मायनों में, सरदार इंद्रजीत सिंह और उनके परिवार ने इसे पीछे छोड़ दिया और आगे बढ़ गए। संघर्ष, कड़ी मेहनत और समर्थन के साथ सरदार इंद्रजीत सिंह ने 1988 में एक रेस्तरां शुरू किया, जिसका नाम उन्होंने असलीपप्पू ढाबा रखा, जो बठैन गेट के पास है – NH2 कोसी कलां। एक नया और बेहतर रेस्तरां बनाने का उनका प्रयास उनके बेटों – गुरदीप सिंह और कुलवीर सिंह की मदद से पूरा हुआ।