IFS अफसर मनोज चंद्रन के रिटायरमेंट पर असमंजस बरकरार, वन मंत्री ने बताई कानूनी पेचीदगी

खबर उत्तराखंड

देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन करने वाले आईएफएस अधिकारी मनोज चंद्रन को लेकर असमंजस बरकरार है. हालांकि इस पर पहली बार बयान देते हुए उत्तराखंड के वन मंत्री ने साफ कर दिया है कि मामले में कानूनी पहलुओं को देखने के बाद ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

भारतीय वन सेवा के अधिकारी मनोज चंद्रन भले ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का नोटिस दे चुके हों, लेकिन राज्य सरकार ने अभी इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है. मनोज चंद्रन ने 28 फरवरी तक का नोटिस स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को लेकर दिया था. इसके बाद से ही अब तक शासन स्तर पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है. हालांकि अब पहली बार वन मंत्री सुबोध उनियाल ने इस प्रकरण पर बोलते हुए स्पष्ट किया है कि इस मामले में कानूनी पहलुओं को देखने के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा. जहां तक सवाल 3 महीने के नोटिस पीरियड से जुड़े नियम का है, तो यह नियम ऐसे व्यक्तियों पर लागू नहीं होता, जो किसी मामले में जांच के दायरे में हों.

नोटिस के पांच महीने बाद भी असमंजस

बता दें कि वैसे तो आईएफएस अधिकारी मनोज चंद्रन ने 5 महीने का नोटिस दिया था. इसके बाद भी कोई निर्णय नहीं होने के बाद इसे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति माना था. अब इस मामले पर फिलहाल सरकार विचार कर रही है कि आगे इसमें नियमानुसार क्या किया जा सकता है. माना जा रहा है कि जल्द ही सरकार की तरफ से इस पर कोई फैसला लिया जा सकता है.

ऑल इंडिया सर्विस से जुड़े नियमों को भी देखा जा रहा

दूसरी तरफ मनोज चंद्रन की जिस मामले में जांच हो रही है, उसकी जांच रिपोर्ट जांच अधिकारी द्वारा शासन को दी जा चुकी है. शासन इस जांच रिपोर्ट से कितना सहमत है, इस पर भी अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है. बात आल इंडिया सर्विस से जुड़े अधिकारी की है, तो ऑल इंडिया सर्विस से जुड़े नियमों को भी देखा जा रहा है. मामले की मुख्यमंत्री कार्यालय तक को भी जानकारी मिल चुकी है.

जानिए मनोज चंद्रन पर क्या आरोप है

बता दें कि आईएफएस अधिकारी मनोज चंद्रन पर नियम विरुद्ध प्रमोशन और नियमितीकरण करने का आरोप है. वन विभाग में मानव संसाधन की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने 504 कर्मियों को नियमित किया था. इसके अलावा उनके द्वारा आरक्षी पद से वन दारोगा पद पर प्रमोशन किए गए थे, जिन्हें मानक से ज्यादा माना गया, और जिसकी जांच के आदेश दिए गए थे.

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