देहरादून: उत्तराखंड में नेताओं और अफसरशाही में तकरार कोई नई बात नहीं है. समय-समय पर नेता इसको लेकर आवाज बुलंद करते रहे हैं. लेकिन कुछ समय सियासत होने के बाद मामला सिफर निकलता है. जबकि मंत्रियों को सचिव स्तर के अधिकारियों की एसीआर लिखने का अधिकार देने की मांग उठती रही है. सूबे में अफसरशाही और मंत्रिमंडल के सदस्यों के बीच की कड़वाहट अक्सर बयानों से जाहिर होती रही है.
सतपाल महाराज उठा चुके हैं आवाज
कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का पिछले कुछ समय से अधिकारियों की एसीआर लिखने का अधिकार मांगना इसी का प्रतिफल कहा जा सकता है. बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री अपने इस वरिष्ठ मंत्री की मांग को दरकिनार करते हुए दिखाई देते रहे हैं. यही नहीं सरकार के बाकी मंत्री भी अपने अधिकारों को बढ़ाने से जुड़े इस मुद्दे पर खामोशी साधे हुए हैं. हालांकि अफसरों पर मंत्रियों की लगाम लगाने से जुड़े इस मुद्दे के ऐसे कई पहलू हैं, जो अफसरों की सरकार पर जकड़ को जाहिर करते हैं.
देवभूमि में नौकरशाही के सरकार पर हावी रहने की चर्चाएं आम हैं. कई दफा मंत्रियों के बयान और निर्देशों की अवहेलना इन चर्चाओं की तस्दीक भी करती है. फिर भी ऐसी क्या बात है कि एक वरिष्ठ मंत्री की बात को सरकार में दरकिनार किया जाता रहा है. यही नहीं मंत्रियों के अधिकार को बढ़ाने से जुड़े इस मामले पर बाकी मंत्रियों की चुप्पी के पीछे का क्या कारण है, यह भी एक बड़ा सवाल है.
सतपाल महाराज बयान पर अडिग
बहरहाल कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने तो हमेशा की तरह एक बार फिर अफसरों पर नियंत्रण करने के लिए ACR का अधिकार देने की मांग रख दी है. खास बात यह है कि इस बार सतपाल महाराज ने कैबिनेट बैठक के दौरान अपने इस प्रस्ताव को सार्वजनिक किया. वह बात अलग है कि सीएम पुष्कर सिंह धामी ने उनकी बातों पर अमल करने से जुड़ा कोई संकेत नहीं दिया. वहीं सतपाल महाराज एसीआर का अधिकार मंत्रियों को दिए जाने को लेकर दिए बयान पर अडिग हैं. जिस ACR का जिक्र सतपाल महाराज गाहे-बगाहे करते रहे हैं.
जानिए क्या है एसीआर
दरअसल ACR का मतलब वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट है. जो हर साल अधिकारी की परफॉर्मेंस के आधार पर लिखी जाती है. हालांकि उत्तराखंड में भी विभागीय मंत्री अपने सचिव या विभागीय अधिकारी की एसीआर लिखता है, लेकिन इसको लेकर पूरा अधिकार मुख्यमंत्री को ही दिया गया है. यानी विभागीय मंत्री ने जो गोपनीय रिपोर्ट अधिकारी को लेकर लिखी है. उस पर सहमति रखना या उसे ना मानना मुख्यमंत्री के अधिकार पर है और मुख्यमंत्री द्वारा दी गयी रिपोर्ट ही अंतिम होती है. लेकिन अब सतपाल महाराज चाहते हैं कि एसीआर का पूरा अधिकार मंत्रियों को दे दिया जाए ताकि मंत्री अपने विभाग के अधिकारी के कार्यों के आधार पर उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट लिख सके.
जानिए अन्य मंत्री क्यों नहीं मुखर
जिस मामले को सतपाल महाराज ने उठाया है वह सरकार ने मंत्रियों के अधिकारों को नौकरशाही में तवज्जो दिलाने से जुड़ा है. लेकिन इसके बावजूद सतपाल महाराज के अलावा बाकी मंत्री इस मामले पर खामोश दिखाई देते हैं. इसके पीछे भी कई वजह मानी जा सकती है, यह कहना गलत नहीं होगा कि अफसरों का दबाव बेहद ज्यादा रहता है और ऐसी स्थिति में कोई भी मंत्री अफसरों की नाराजगी झेलने की स्थिति में नहीं होता. लिहाजा यह मुद्दा उठाकर विभागीय अफसरों से सीधे बैर लेने से भी मंत्री बचते हैं.
उधर मुख्यमंत्री की इच्छा के विरुद्ध मंत्रियों का खुले रूप में इस तरह कोई मांग रखना संभवत मंत्रियों को अपने हक में नहीं दिखाई देता और इसका भी मंत्रियों पर दबाव होता है. शायद इसीलिए मंत्री अपने अधिकार से जुड़े मामले पर भी खामोश ही रहते हैं. उधर मुख्यमंत्री का इस मामले में गंभीर ना होना कई वजहों को जाहिर करता है. इसमें पहली वजह मुख्यमंत्री का अधिकारियों को लेकर एकाधिकार को मंत्रियों के साथ ना बांटना हो सकता है. यही नहीं अफसरों की लॉबी को साधे रखने की मनसा भी इसके पीछे संभव है.
मुद्दे पर कांग्रेस लेती रही है चुटकी
सतपाल महाराज ने अपनी सरकार के सामने ही इस मुद्दे को उठाकर यह तो साफ कर दिया है कि सरकार के मंत्रियों को हावी होती अफसरशाही पसंद नहीं आ रही है और अफसरों के इस दबाव को अपने अधिकार बढ़ाकर कम करने की कोशिश की जा रही है. हालांकि सरकार के भीतर इस तरह के मुद्दे उठने पर हमेशा की तरह कांग्रेस चुटकी लेती हुई नजर आ रही है. पूर्व नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक प्रीतम सिंह ने तो दो टूक बयान देते हुए इसे सरकार के भीतर असहज स्थिति के रूप में बयां किया है.
प्रीतम सिंह कहते हैं कि सतपाल महाराज को यदि सरकार में असहजता महसूस हो रही है तो उन्हें मुख्यमंत्री को मंत्री पद से इस्तीफा देने की बात कह देनी चाहिए. लेकिन लगता है कि सतपाल महाराज को अपनी कुर्सी से बेहद ज्यादा मोह है और किसी लिए एक तरफ वह अफसरों पर अपने अधिकार को बढ़ाना चाहते हैं और दूसरी तरफ यह अधिकार न मिलने पर कुर्सी भी नहीं त्यागना चाहते.
कई मंत्री जता चुके नाराजगी
सतपाल महाराज इकलौते मंत्री नहीं है जिन्होंने अफसरों को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है. भाजपा सरकार में ही कई मंत्री अब तक नौकरशाही के रवैया को लेकर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. इसमें रेखा आर्य तो अपने विभाग के आईएएस अधिकारी की गुमशुदगी तक की चिट्ठी लिखती दिखी हैं. यही नहीं चंदन राम दास और प्रेमचंद भी अफसरों से कामों से कई मौकों पर नाराज दिखे हैं. वैसे यह नाराजगी का सिलसिला केवल इसी सरकार से नहीं है त्रिवेंद्र सरकार में भी कई मंत्रियों ने अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोला था. कुल मिलाकर सरकार के मंत्रियों और नौकरशाहों में टकराव की कई बार स्थिति बनी है. लेकिन कभी भी मंत्री एकजुट होकर अफसरशाही के खिलाफ खड़े नहीं दिखाई दिए.
बीजेपी नेताओं ने टकराव का किया खंडन
हालांकि इस मामले में कांग्रेस के बयान सरकार के भीतर के टकराव को मुद्दा बनाने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए हैं. जाहिर है कि अपनी सरकार पर इस तरह के हमलों का भाजपा संगठन की तरफ से बचाव करना ही था. लिहाजा पार्टी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र भसीन ने इस पर कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए साफ किया कि कांग्रेस नेता भाजपा के भीतर के मामलों पर भी बेवजह टिप्पणी करते हैं. देवेंद्र भसीन ने कहा कि प्रीतम सिंह को कांग्रेस के भीतर की लड़ाई पर ध्यान देना चाहिए. जहां तक बात कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की मांग का है तो सरकार के मंत्री एकजुट होकर काम कर रहे हैं और महाराज ने लोकतांत्रिक रूप से अपनी बात को भी रख दिया है. लेकिन यह निर्णय सामूहिक रूप से होना है.
इन राज्यों में एसीआर लिखे जाने का अधिकार
देखा जाए तो सतपाल महाराज की यह मांग कोई अनोखी नहीं है ना ही ऐसी है जिसको पूरा नहीं किया जा सकता. लेकिन एक संभावना यह भी है कि मंत्रियों को यह अधिकार मिलने के बाद इस अधिकार का दुरुपयोग भी किया जा सकता है. एक अंदेशा यह है कि शायद यह भी एक वजह है जिसके कारण सतपाल महाराज की मांग पर उतनी गंभीरता से विचार नहीं हो पा रहा जितना किया जाना चाहिए था.
माना जा रहा है कि मंत्रियों को यह अधिकार मिलने के बाद अधिकारियों पर बेहद ज्यादा दबाव बन जाएगा और यह सही नहीं होगा. लेकिन ऐसे अधिकार दूसरे कई राज्यों में दिए गए हैं. लिहाजा उत्तराखंड में ऐसा क्यों नहीं हो सकता. वह पहले ही कह चुके हैं कि उत्तर प्रदेश समेत हरियाणा और दिल्ली तक में भी मंत्रियों को एसीआर लिखे जाने का अधिकार है, लिहाजा उत्तराखंड में भी इस पर विचार हो सकता है.