न्यूज़ डेस्क: अभी तक माना जाता था कि एड्स (AIDS) लाइलाज बीमारी है. एड्स का मरीज जिंदगी की जंग हार जाता है. लेकिन दुनिया में एक बार फिर ऐसा चमत्कार हुआ है जिसने मेडिकल इतिहास में एक नए अध्याय की शुरूआत कर दी है.
फ्रांस के पाश्चर इंस्टीट्यूट ने दावा किया है कि बोन मैरो स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Stem Cell Transplantation) की बदौलत HIV का एक मरीज पूरी तरह से ठीक होने में कामयाब रहा है. बोन मैरो ट्रांसप्लांट से HIV से ठीक हुआ ये दुनिया का तीसरा मरीज है.
दुनिया का तीसरा मरीज
जिस मरीज ने HIV पर जीत हासिल की है वो जर्मनी के ड्यूसेल डोर्फ का रहने वाला है. 2008 में मरीज को पता चला था कि वो HIV पॉजिटिव है. जिसके 3 साल बाद ही उसे ब्लड कैंसर भी हुआ. जिसे एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया के नाम से पहचाना गया. 2013 में डॉक्टरों ने स्टेम सेल की मदद से उसका बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया. ये ट्रांसप्लांट एक महिला डोनर की वजह से मुमकिन हुआ. महिला डोनर के CCR5 म्यूटेशन जीन ने बीमारी को शरीर में फैलने से पूरी तरह से रोक दिया.
डॉक्टर रह गए दंग
जिसे देखकर डॉक्टर भी हैरान रह गए. ये एक तरह का दुर्लभ जीन है, जो कोशिकाओं में HIV को फैलने से रोकता है. इसके बाद डॉक्टरों ने 2018 में फैसला किया कि HIV के लिए दी जाने वाली एंटी रेट्रोवाइरल थेरेपी बंद कर दी जाए. जिसके बाद 4 साल तक इस मरीज पर नजर रखी गई. और कई परीक्षण किए गए. इस दौरान डॉक्टरों ने जो देखा वो हैरान करने वाला था. मरीज में HIV लौटने का कोई लक्षण नहीं दिखा. स्टेम सेल प्रत्यारोपण का पहली बार इस्तेमाल 2007 में टिमोथी रे ब्राउन के इलाज के लिए हुआ था. टिमोथी को बर्लिन पेशेंट के तौर पर भी जाना जाता है. उस दौरान ल्यूकेमिया का इजात करने के लिए डॉक्टरों ने बोन मैरो की खतरनाक कोशिकाओं को नष्ट कर दिया था.
बोन मैरो ट्रांसप्लांट से एड्स का इलाज
बोन मैरो क्या होती है? बोन मैरो ट्रांसप्लांट का एचआईवी एड्स के इलाज (HIV Aids Treatment) का क्या लेना देना है, आइए आपको बताते हैं.
बोन मैरो हड्डियों के बीच पाया जाने वाला एक पदार्थ होता है जिसमें स्टेम सेल होते है. जब बोन मैरो डिफेक्टिव होता है तो थैलासीमिया, सिकल सेल एनीमिया, ल्यूकेमिया जैसी बीमारियां होती हैं. जिनके इलाज के लिए मरीज का बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है.
– बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत उन बीमारियों में पड़ती है, जब बोन मैरो काम करना बंद कर देता है.
– बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए ये जरूरी है कि मरीज का बोन मैरो डोनर के बोन मैरो से मेल खाता हो.
– साथ ही, ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन यानी ‘HLA’ का मैच होना भी आवश्यक है .
– दरअसल HLA एक तरह के प्रोटीन होते हैं जो शरीर के इम्युन सिस्टम को कंट्रोल करते हैं.
– ‘HLA’ के समान होने की संभावना अपने सगे भाई-बहन में 25 फीसदी
– जबकि माता-पिता में सिर्फ एक से तीन फीसदी होती है.
जब ‘HLA’ 100 प्रतिशत मैच कर जाता है तो डॉक्टर इसके ट्रांसप्लांट की तैयारी शुरू कर देते हैं. बोन मैरो ट्रांसप्लांट एक जटिल मेडिकल प्रक्रिया है जिसमें क्षतिग्रस्त या नष्ट हुई स्टेम सेल को स्वस्थ बोन मैरो सेल से बदला जाता है. इसकी प्रक्रिया दो तरह की होती है. आटोलोगस और एलोजेनिक.
आटोलोगस – इसमें मरीज के खून से ही स्टेम सेल निकालकर सुरक्षित रखा जाता है. फिर कीमोथैरेपी दी जाती है। इसके बाद उसी के स्टेम सेल को वापस शरीर में डाल दिया जाता है.
दूसरी प्रक्रिया है एलोजेनिक – इसमें सबसे पहले परिवार के सदस्य का स्टेम सेल लिया जाता है. उसका स्टेम सेल मरीज के शरीर में डाला जाता है.
WHO के डेटा के मुताबिक 2021 में 3 करोड 84 लाख लोगों को एडस हुआ, जिसमें 6 लाख 50 हजार लोगों की मौत हो गई. इसलिए एड्स मरीजों के लिए बैन मैरो ट्रांसप्लांट जिंदगी की नई उम्मीद बनता दिख रहा है.