न्यूज़ डेस्क: जिस दौर में हम लोग जी रहे हैं, उसमें आने वाला पल किस रूप में हमारे सामने आ जाए, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है. सभी तरह के प्रयासों के बावजूद हम केवल इतना कर सकते हैं कि आने वाले पलों की आहट को भांप लें. इसके बावजूद उसकी नीयत क्या होगी, उसे तभी समझा जा सकता है, जब हम अपने आंख और कान को खुले रखें. आज आप से एक वैसी ही कहानी जिक्र कर रहा हूं, जिसे जानने के बाद आप के लिए भी भरोसा करना मुश्किल होगा. एक प्रधानमंत्री कैसे छोटी सी शिकायत को लेकर खुद थाने पहुंच जाए और किसी को भनक तक न लगे. जब तक इस बात का किसी को अहसास हो, तब तक थाने का पूरा अमला ही सस्पेंड हो जाए.
दरअसल, बात 1979 यानि 44 साल पहले की है. देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh ) एक व्यक्ति की शिकायत पर अचानक शाम के छह बजे यूपी के इटावा इलाके के ऊसराहार पुलिस स्टेशन पहुंच गए. वह 75 साल के परेशान किसान के रूप में धीमी चाल से थाना परिसर में दाखिल हुए थे. पीएम होते हुए भी थाने में अकेले और एक फटेहाल, मजबूर किसान के रूप में थाने के अंदर एंट्री की. ताकि थाने में तैनात पुलिसकर्मी उन्हें सही से पहचान न सकें. इस बात को तय करने के लिए चौधरी चरण सिंह ने खेती किसानी करने वाले एक शख्स की तरह धोती कुर्ता पहने वहां पहुंच गए. थाने में दाखिल होने के बाद, उन्होंने पुलिसकर्मियों से पूछा – दरोगा साहब हैं. जवाब मिला वो तो नहीं हैं. साथ ही एएसआई और अन्य पुलिसकर्मी पूछते हैं कि आप कौन हैं, यहां, क्यों आए हैं?
ऐसे नहीं लिखे जाते रपट
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि रपट लिखवानी है. पुलिस वालों ने पूछा- क्या हुआ, हमें बताओ. उन्होंने कहा कि मेरी किसी ने जेब काट ली है. जेब में काफी पैसे थे. इस पर थाने में तैनात एएसआई ने कहा कि ऐसे थोड़े रपट लिखा जाता है. उन्होंने कहा कि मैं, मेरठ का रहने वाला हूं. खेती-किसानी करता हूं. यहां पर सस्ते में बैल खरीदने के लिए पैदल ही वहां से आया हूं. पता चला था यहां पर बैल सस्ते में मिलता है. जब यहां आया तो जेब फटी मिली. जेब में कई सौ रुपए थे. पॉकेटमार वो रुपए लेकर भाग गया. उस समय कई सौ रुपए का मतलब बहुत कुछ होता था. सौ रुपए लेकर चलने वालों का अपना अलग रुतवा होता था.
कैसे मान लूं जेबकतरों ने मार लिए पैसे
इस पर पुलिस वालों ने कहा कि तुम पहले ये बताओ मेरठ से चलकर इतनी दूर इटावा आए हो. पैसा गिर गया या जेबकतरों ने पैसे मार लिए, यह कैसे कहा जा सकता है. आप कहते हो, पैसे दिला दो. थाने में मौजूद पुलिसकर्मी ने कहा, हम ऐसे रपट नहीं लिखते. इस पर उन्होंने कहा कि मैं, घर वालों को क्या जवाब दूंगा. मुश्किल से पैसे लेकर यहां आया था. इस पर पुलिसकर्मियों ने कहा कि यहां से चले जाओ, समय बर्बाद मत करो. कुछ देर तक इंतजार करने के बाद फिर किसान ने रपट लिखने की गुहार पुलिसकर्मियों से लगाई. मगर सिपाही ने अनसुना कर दिया. इस पर पीएम चौधरी चरण सिंह एक आम किसान की तरह निराश हो गए.
रपट लिखवा देंगे, पर खर्चा पानी लगेगा
इतने में, थानेदार साहब भी वहां आ गए, वो भी रपट लिखने को तैयार नहीं हुए. किसान यानी तत्कालीन पीएम परेशान होकर घर लौटने के इरादे से थाने के गेट तक बाहर आ गए और वहीं पर खड़े हो गए. थोड़ी देर बाद एक सिपाही को उन पर रहम आया. उसने पास आकर कहा, ‘रपट लिखवा देंगे, खर्चा पानी लगेगा’. इस पर चौधरी साहब ने पूछा- ‘कितना लगेगा. बात सौ रुपए से शुरू हुई और 35 रुपए देने की बात पर रपट लिखने के लिए थाने वाले मान गए’. बतौर, किसान चौधरी साहब खुश हुए. ये बात सिपाही ने जाकर सीनियर अफसर को बताई. अफसर ने रपट लिखवाने के लिए बुला लिया. रपट लिख कर मुंशी ने प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से पूछा, ‘बाबा हस्ताक्षर करोगे कि अंगूठा लगाओगे. थानेदार के टेबल पर स्टैंप पैड और पेन दोनों रखा था. उन्होंने कहा- हस्ताक्षर करूंगा. यह कहने के बाद उन्होंने पैन उठा लिया और साइन कर दिया. साथ ही टेबल पर रखे स्टैंप पैड को भी खींच लिया. इसके बाद थाने का मुंशी सोच में पड़ गया. हस्ताक्षर करेगा तो अंगूठा लगाने की स्याही का पैड क्यों उठा रहा है? किसान बने प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने अपने हस्ताक्षर में नाम लिखा, ‘चौधरी चरण सिंह’ और मैले कुर्ते की जेब से मुहर निकाल कर कागज पर ठोंक दी, जिस पर लिखा था ‘प्रधानमंत्री, भारत सरकार.’ ये देखकर पूरे थाने में हड़कंप मच गया. आवेदन कॉपी पर पीएम की मुहर लगा देख पूरा का पूरा थाना सन्न रह गया.
पूरे थाने को सस्पेंड कर चुपचाप वहां से निकल गए PM
कुछ ही देर में पीएम का काफिला भी वहां पहुंच गया. जिले और कमिश्नरी के सभी आला अधिकारी धड़ाधड़ वहां पहुंच गए. थाने के पुलिसकर्मियों सहित डीएम एसएसपी, एसपी, डीएसपी, अन्य पुलिसकर्मी, आईजी, डीआईजी सबके होठ सूख गए. सभी यह सोचने लगे, अब क्या होगा? पूरे प्रशासिक अमले में किसी को पता नहीं था कि पीएम चौधरी चरण सिंह खुद इस तरह थाने आकर औचक निरीक्षण करेंगे. पूरे प्रशासनिक अमले को परेशान देख पीएम ऊसराहार थाने के सभी कर्मचारियों को सस्पेंड करने का आदेश देते हुए चुपचाप रवाना हो गए.
कौन थे चौधरी चरण सिंह
बता दें कि चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को मेरठ जिले के बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव में हुआ था. 1929 में वह आजादी की लड़ाई में शामिल हुए और 1940 में सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल भी गए. 1952 में चौधरी साहब कांग्रेस सरकार में राजस्व मंत्री बने और किसान हित में जमींदारी उन्मूलन विधेयक पारित किया. 3 अप्रैल 1967 को चौधरी साहब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. चुनाव जीतने के बाद 17 फरवरी 1970 को वो यूपी के दोबारा सीएम बने. उसके बाद वो केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने. उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की. 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की. 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बने.
साभार – ABP न्यूज़ via Dailyhunt