नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह 1998 से राजनीति के अपराधीकरण का मुद्दा उठाता रहा है और इसे अपराध मुक्त बनाने के लिए उसने सक्रियता से कदम उठाए हैं। शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में आयोग ने कहा कि राजनीति को प्रभावी तरीके से अपराध मुक्त करने की दिशा में और कदम उठाने के लिए विधायी संशोधनों की जरूरत होगी जो चुनाव आयोग के दायरे से बाहर की बात है।
चुनाव आयोग ने क्या कहा
आयोग ने कहा कि अपने ‘प्रस्तावित चुनावी सुधार, 2016’ में उसने अपनी 2004 की उस सिफारिश को दोहराया था कि ऐसे संज्ञेय अपराधों में आरोपित व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए, जिनमें कम से पांच वर्ष की सजा का प्रविधान हो और जिसके विरुद्ध आरोप तय कर दिए गए हों और जिसके विरुद्ध मामले चुनाव से कम से कम छह महीने पहले दायर किए गए हों।
याचिका में चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की
आयोग ने यह हलफनामा वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका के जवाब में दाखिल किया है। याचिका में उन्होंने ऐसे लोगों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है जिनके विरुद्ध गंभीर अपराधों में आरोप तय कर दिए गए हैं। वकील अश्विनी कुमार दुबे के जरिये दाखिल याचिका में केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को यह निर्देश देने की मांग भी की गई है वे गंभीर अपराधों में मुकदमों का सामना करने वालों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कदम उठाएं।
जनहित याचिका में किया दावा
जनहित याचिका में दावा किया गया है कि विधि आयोग की सिफारिशों और अदालत के पूर्व के निर्देशों के बावजूद केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने इस दिशा में कदम नहीं उठाए हैं।