क्या लोगों के हित के लिए प्राइवेट प्रॉपर्टी पर कब्जा कर सकती है सरकार? सुप्रीम कोर्ट में जमकर हुई बहस, पढ़ें पूरी खबर…

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नई दिल्ली: देश में संपत्ति बंटवारे पर मचे राजनीतिक घमासान के बीच सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये कहना खतरनाक होगा कि किसी शख्स की निजी संपत्ति पर किसी संगठन या सरकार का हक नहीं माना जा सकता. साथ ही ये कहना भी खतरनाक होगा कि लोक कल्याण के लिए सरकार इसे अपने कब्जे में नहीं ले सकती. कोर्ट ने कहा कि संविधान का मकसद सामाजिक बदलाव की भावना लाना है.

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली नौ जजों की बेंच ने ये टिप्पणी की. दरअसल, मुंबई के प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (पीओए) समेत कई याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि संविधान के अनुच्छेद 39बी और 31सी की संवैधानिक योजनाओं की आड़ में सरकार निजी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकती.

सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार कर रही है कि क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39बी के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है या नहीं. बेंच ने कहा कि ये सुझाव देना शेखी बघारने जैसा होगा कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का मतलब केवल सार्वजनिक संसाधनों से है और किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति से नहीं है.

ऐसा सोचना क्यों खतरनाक है, इस बारे में समझाते हुए बेंच ने कहा कि हमारे लिए ये कहना कि अनुच्छेद 39बी के तहत प्राइवेट फॉरेस्ट पर सरकारी नीतियां लागू नहीं होंगी, इसलिए इससे दूर रहें, ये बहुत खतरनाक होगा.

कोर्ट ने कहा कि 1950 के दशक में जब संविधान बनाया गया था तब इसका मकसद सामाजिक बदलाव लाना था, इसलिए हम ये नहीं कह सकते कि निजी संपत्ति को अनुच्छेद 39बी के दायरे में नहीं लाया जा सकता.

दरअसल, ये पूरा मामला महाराष्ट्र सरकार के 1976 के महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MHADA) कानून से जुड़ा है. इस कानून में प्रावधान है कि सरकार पहले से अधिगृहित किसी इमारत या जमीन का अधिग्रहण कर सकती है. इस कानून के खिलाफ सबसे पहले 1992 में याचिका दायर की गई थी. तब से ही ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है.

इस कानून का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जर्जर इमारतों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार देने वाला महाराष्ट्र का कानून वैध है या नहीं, ये पूरी तरह से अलग मुद्दा है और इसका फैसला अलग से किया जाएगा. इसके बाद अदालत ने पूछा कि क्या एक बार कोई संपत्ति निजी हो जाने के बाद अनुच्छेद 39बी के दायरे में आती है या नहीं?

कोर्ट ने कहा कि समाजवादी अवधारणा में किसी भी संपत्ति को निजी नहीं माना गया है. समाजवादी अवधारणा संपत्ति पर सभी का हक मानती है. लेकिन हमारे यहां संपत्ति हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए रखते हैं. लेकिन हम उस संपत्ति को व्यापक समुदाय के लिए ट्रस्ट में भी रखते हैं. यही सतत विकास की पूरी अवधारणा है.

बेंच ने कहा कि संविधान में अनुच्छेद 39बी इसलिए जोड़ा गया था, क्योंकि इसका मकसद सामाजिक बदलाव लाना है. इसलिए हमें इतनी दूर नहीं जाना चाहिए कि कोई संपत्ति निजी है, इसलिए उस पर अनुच्छेद 39बी लागू नहीं होगा.

अनुच्छेद 39बी सरकार के लिए ये सुनिश्चित करने के लिए नीति बनाना जरूरी करता है कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे आम लोगों की भलाई हो सके.

सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन की मुख्य याचिका समेत 16 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. पीओए ने ही 1992 में याचिका दायर की थी. 2002 में इस मामले को नौ जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया था. इससे पहले इस याचिका पर तीन और पांच जजों की बेंच ने भी सुनवाई की थी.

 

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