देहरादून: उत्तराखंड में पूर्व विधायकों के संगठन के रूप में एकत्रित होने से राजनीतिक हलचल तेज है, खास बात यह है कि प्रदेश में पहला सम्मेलन भी पूर्व विधायकों की तरफ से किया गया है. उधर पूर्व विधायकों का इस तरह एकत्रित होना राजनीतिक रूप से कई संदेश और कयासबाजी को जन्म दे रहा है. इससे इतर पूर्व विधायकों ने 21 जनवरी को विधानसभा में सम्मेलन के दौरान शिरकत करते हुए विभिन्न सुझाव भी दिए हैं.
पिछले दिनों पूर्व विधायकों के एक मंच पर आने से राजनीतिक हलचल तेज हो गई थी, इसमें न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा के पूर्व विधायक भी शामिल हुए. माना गया कि अपनी पार्टी और सरकार से नजरअंदाज किए जा रहे पूर्व विधायकों ने अपने एक अलग मंच को स्थापित करने की कोशिश के साथ पार्टी और सरकार से तवज्जो मिलने को लेकर इस तरह के एक संगठन को तैयार किया है.
हालांकि पूर्व विधायक लगातार इस संगठन को समाज के प्रति अपने दायित्व और सरकार को अपने अनुभव के आधार पर सुझाव देने तक ही सीमित बता रहे हैं. विधानसभा में आज पूर्व विधायकों के सम्मेलन के दौरान भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच कराने के सुझाव दिए गए. इसके अलावा पूर्व पेंशन बहाल करने के साथ ही स्थानीय युवाओं को 70% रोजगार देने के सुझाव भी दिए गए.
खास बात यह है कि इस सम्मेलन में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ ही भाजपा के कई पूर्व विधायक भी मौजूद रहे. आकलन के अनुसार उत्तराखंड में तकरीबन 120 से ज्यादा पूर्व विधायक हैं, जिसमें से सम्मेलन में करीब 30 पूर्व विधायक पहुंचे थे. उधर पूर्व विधायक राजेश शुक्ला सम्मेलन के दौरान सरकार की आलोचना पर भड़कते हुए दिखाई दिए. हालांकि इस सम्मेलन के दौरान बातचीत को सुझाव देने तक ही सीमित रखा गया. उधर सम्मेलन में आए सुझावों को मुख्यमंत्री को रविवार को लिखित रूप से दिया जाएगा.