उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जा रहा है लोकपर्व फूलदेई, बच्चे देहलियों में फूल डालकर ले रहे आशीर्वाद, मुख्यमंत्री धामी ने दी शुभकामनाएं

खबर उत्तराखंड

देहरादून: उत्तराखंड में वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक और बच्चों का पसंदीदा त्योहार फूलदेई पर्व आज से मनाया जाएगा। होली के साथ फूलदेई त्योहार होने के बावजूद बच्चों में इसे लेकर खासा उत्साह है। बच्चों ने फूलदेई को लेकर तैयारी पूरी कर ली है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी इस मौके पर प्रदेशवासियों को शुभकानाएं दीं।

उत्तराखंड में मनाया जाने वाला फूलदेई त्योहार चैत्र संक्रांति पर मनाया जाता है। इसमें बच्चे फ्योली, बुरांस, पंय्या, आडू के साथ ही विभिन्न तरह के फूल कंडी (टोकरी) पर चुनते हैं। जिसके बाद घोघा माई के गीत गाते हुए फूलों को घरों की देहरी पर डालते हैं।

कुछ जगह पर दस दिन तो कुछ जगह पर एक सप्ताह तक फूल डाले जाते हैं। फूल डालने वाले बच्चों को लोग उपहार देते हैं। कुछ जगह पर बच्चों ने बृहस्पतिवार को ही फूल चुनकर रख लिए, ताकि सुबह समय पर फूल डाले जा सकें। देवर खडोरा गांव के पंड़ित लक्ष्मी प्रसाद भट्ट और जैसाल गांव के पंडित सोनू जैसाली ने बताया कि शुक्रवार को चैत्र संक्रांति पर फूलदेई त्योहार मनाया जाएगा।

फूलदेई और होली का अद्भुत संगम

इस बार फूलदेई का संयोग होली के साथ हुआ है. जहां होली के रंगों में लोग रंगे हैं, वहीं फूलदेई की सुगंध इस पर्वतीय राज्य को नई ऊर्जा से भर रही है. आज के आधुनिक दौर में, जब नई पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की ओर बढ़ रही है, ऐसे में लोक पर्वों को संजोकर रखना बेहद जरूरी हो जाता है. फूलदेई जैसे त्योहार हमें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं और आने वाली पीढ़ी को प्रकृति तथा संस्कृति का महत्व समझाने का काम करते हैं. जानकारों का कहना है कि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़े रहें, फूलदेई सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने की परंपरा है.

पर्व की पौराणिक मान्यता

पर्व मनाने के पीछे पौराणिक मान्यता ये है कि एक बार भगवान शिव शीतकाल में अपनी तपस्या में लीन थे. भगवान की तपस्या को कई वर्ष हो गए, लेकिन भगवान शिव तपस्या से नहीं जागे. जिसके बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को तपस्या से उठाने के लिए युक्ति निकाली. माता पार्वती ने शिव भक्तों को पीले वस्त्र पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरूप दे दिया. जिसके बाद सभी देव पुष्प चुनकर लाए, जिसकी खुशबू पूरे कैलाश पर्वत महक उठी. सबसे पहले भगवान शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किए गए, जिसे फूलदेई कहा गया. वहीं बच्चों के वेश में शिवगणों को देखकर भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया.

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