देहरादून: उत्तराखंड में बग्वाल, इगास मनाने की परंपरा है. दीपावली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहते हैं. पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. उत्तराखंड सरकार ने इस त्यौहार में रस घोलते हुए आज अवकाश की घोषणा भी की है. इससे लोगों का उत्साह दोगुना हो गया है. त्यौहार और उत्सव के मौसम में उत्तराखंड का जिक्र न आए यह संभव ही नहीं है. देशभर में दीपावली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया. ये भारत की खूबसूरती ही है कि अलग-अलग प्रान्तों में दीपावली का त्यौहार प्रकाश पर्व के साथ-साथ अपने वर्षों पुरानी परंपरागत तौर-तरीकों के साथ मनाया जाता है. ऐसा ही उत्तराखंड में भी दीपावली को एक अनूठे अंदाज में मनाने की परंपरा है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश वासियों को इगास पर्व की बधाई दी है.
सीएम ने गढ़वाली में ट्वीट किया-
आप सभैं प्रदेशवासियों के इगास/बूढ़ी दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं !
आओ, हम सभैं मिलीजुली बेरि बुढी दिवाली मनूनू और अपणी नय पीढि के अपणी महान लोक संस्कृति दगाडा जोडनू। लोक पर्व बूढी दिवाली हमरी समृद्ध संस्कृति की पछयाण छ। यैके यादगार बणूने कि थे हमले राजकीय अवकाश की घोषणा करी रा।
— Pushkar Singh Dhami (Modi Ka Parivar) (@pushkardhami) November 4, 2022
इगास पर जीतें इनाम
हमारी सरकार ने इगास/बूढ़ी दिवाली के अवसर पर 3 भाग्यशाली विजेताओं को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय लिया है।#इगास मनाते हुए आप भी अपने परिवार के साथ सेल्फी लेकर #SelfieWithFamily हैशटैग के साथ अपनी फ़ोटो सोशल मीडिया पर अपलोड कर उपहार जीतने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं। pic.twitter.com/oYvBcgDNC9
— Pushkar Singh Dhami (Modi Ka Parivar) (@pushkardhami) November 4, 2022
क्या है इगास पर्व
उत्तराखंड में बग्वाल, इगास मनाने की परंपरा है. दीपावली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहते हैं. पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. साथ ही गाय व बैलों की पूजा की जाती है. शाम के वक्त गांव के किसी खाली खेत अथवा खलिहान में नृत्य के भैलो खेला जाता है. भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है. इगास पर पटाखों का प्रयोग नहीं किया जाता है.
11वें दिन इसलिए मनाई जाती है इगास
एक मान्यता ये भी है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो लोगों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था. लेकिन, गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली थी, इसलिए ग्रामीणों ने खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया था.
ये है दूसरी मान्यता
दूसरी मान्यता है कि दिवाली के वक्त गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट और तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक 11वें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी. युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई गई थी.
एक और कथा भी है
एक और ऐसी ही कथा है कि चंबा का रहने वाला एक व्यक्ति भैलो बनाने के लिए लकड़ी लेने जंगल गया था और ग्यारह दिन तक वापस नहीं आया. उसके दुख में वहां के लोगों ने दीपावली नहीं मनाई. जब वो व्यक्ति वापस लौटा तभी ये पर्व मनाया गया और लोक खेल भैलो खेला. तब से इगास बग्वाल के दिन दिवाली मनाने और भैलो खेलने की परंपरा शुरू हुई.
क्या है इगास बग्वाल
गढ़वाल में 4 बग्वाल होती हैं. पहली बग्वाल कर्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है. दूसरी अमावस्या को पूरे देश की तरह गढ़वाल में भी अपनी लोक परंपराओं के साथ मनाई जाती है. तीसरी बग्वाल बड़ी बग्वाल (दिवाली) के ठीक 11 दिन बाद आने वाली, कर्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. गढ़वाली में एकादशी को इगास कहते हैं. इसलिए इसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है. चौथी बग्वाल आती है दूसरी बग्वाल या बड़ी बग्वाल के ठीक एक महीने बाद मार्गशीष माह की अमावस्या तिथि को. इसे रिख बग्वाल कहते हैं. यह गढ़वाल के जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में मनाई जाती है.