नई दिल्ली : आम की दुनिया में खास माने जाने वाले लंगड़ा, चौसा और गुलाब जामुन अपने रंग के कारण लोगों की नजरों से गिर गए हैं। भरपूर मिठास के बावजूद बारिश की वजह से सांवले हो चुके ये आम ग्राहकों को पसंद नहीं आ रहे। यही वजह है कि ऊंची कीमतों पर बिकने वाले इन आमों को उत्पादक कौड़ियों के भाव बेचने को मजबूर हैं।
मौसम की मार से फसल तबाह
आम की फसल पर मौसम की मार का जो सिलसिला फरवरी माह में शुरू हुआ था वह अभी थम नहीं रहा है। तापमान में उतार चढ़ाव व ओलाविष्टि से लगभग अस्सी प्रतिशत फसल पहले ही बर्बाद हो गई थी। जो फसल बच गई वह भी बारिश की चपेट में है। पिछले एक माह से हो रही बारिश की वजह से दशहरी, गुलाब जामुन, लंगड़ा और चौसा आम पर कालिख आ गई है।
चेपा बीमारी ने चपेट में लिया
एक किसान के मुताबिक आम को चेपा बीमारी ने अपनी चपेट में लिया। चेपा बीमारी लगने पर काला चिपचिपा पदार्थ पत्तों पर जम जाता है जब बारिश होती है तो यही काला पदार्थ पत्तों से फल पर पहुंचने पर उसे काला कर देता है। दूसरे आम विक्रेता बताते हैं कि काले धब्बे लगे आम को उच्च वर्ग व मध्यम वर्गीय ग्राहक नहीं खरीदते। खराब होने के डर से निचले तबके के ग्राहकों को बेहद कम दामों में बेचना पड़ता है। मंडी के एक आढ़ती के मुताबिक इस बार अस्सी प्रतिशत फसल पहले ही बर्बाद हो चुकी जो बची उसे बारिश ने चौपट कर दिया। चालीस से पचास रुपए बिकने वाला आम कौड़ियों के भाव बिक रहा है। कांवड़ यात्रा के चलते एक सप्ताह भारी वाहनों का आवागमन पूरी तरह बंद रहा। जिसकी वजह से आम दूसरे प्रदेशों में नहीं भेजा जा सका।
ये प्रजाति हुईं खराब
शुरुआती दौर में बारिश और ओलाविष्टि ने दशहरी को अपनी चपेट में लिया। दशहरी काली तो नहीं पड़ी लेकिन बीमारी की वजह से मिठास गायब हो गई। अब गुलाब जामुन और लंगड़ा कालेपन का शिकार हैं।
लागत निकालने को भटक रहे किसान
काला पड़ने के कारण मंडी में आम का कोई खरीदार नहीं है। किसान आम का भंडारण भी नहीं कर सकता। लागत कैसे निकले? इसके लिए किसान निजी वाहनों में अपना आम बेचने के लिए मंडी छोड़ खुद गांव गांव जा रहे हैं। एक अन्य किसान का कहना है कि मंडी में कोई नहीं ले रहा इसलिए गांव में जाकर बेचना पड़ रहा है।