‘आदिवासी बाहर तो मुस्लिम अंदर क्यों? शरीयत पर नहीं करेंगे समझौता…’, UCC पर जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने खींच दी विरोध की लकीर

खबर उत्तराखंड

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा में आज से यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल पर बहस शुरू हो रही है. इस बीच मुस्लिम संगठनों ने इस बिल का विरोध करना शुरू कर दिया है. देहरादून में इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन भी हुआ. जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि मुसलमान ऐसा कोई भी कानून नहीं मानेंगे जो शरियत के खिलाफ हो.

जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने इस बिल से आदिवासियों को छूट दिये जाने का हवाला देते हुए कहा कि यदि इस कानून से आदिवासी समुदाय को अलग रखा जा सकता है तो संविधान में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के आधार पर अल्पसंख्यकों को भी इस कानून के दायरे से अलग रखा जाना चाहिए.

जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने एक बयान में कहा, “हम ऐसे किसी भी कानून को स्वीकार नहीं कर सकते जो शरीयत के खिलाफ हो क्योंकि एक मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन वह शरीयत और मजहब पर कभी समझौता नहीं कर सकता है.”

आदिवासी बाहर तो मुस्लिम अंदर क्यों?

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता विधेयक (UCC Bill) पेश किया गया है और अनुसूचित जनजातियों को इस प्रस्तावित कानून से छूट दी गई है.

मदनी ने सवाल उठाया कि अगर संविधान की एक धारा के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, तो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देते हुए संविधान की धारा 25 और 26 के तहत मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता क्यों नहीं दी जा सकती है.

मदनी ने दावा किया कि संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी है; लेकिन समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को निरस्त करती है.

उन्होंने पूछा, “अगर यह समान नागरिक संहिता है तो नागरिकों के बीच यह अंतर क्यों है”

मदनी ने यह भी कहा कि हमारी कानूनी टीम विधेयक के कानूनी पहलुओं की समीक्षा करेगी जिसके बाद आगे की कानूनी कार्रवाई पर निर्णय लिया जाएगा.

सवाल मुसलमानों के पर्सनल लॉ का नहीं

मदनी ने कहा कि सवाल मुसलमानों के पर्सनल लॉ का नहीं, बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को अक्षुण्ण रखने का है.

उन्होंने सवाल किया कि जब पूरे देश में नागरिक कानून एक जैसा नहीं है तो वे पूरे देश में एक पारिवारिक कानून लागू करने पर क्यों जोर देते हैं.

बता दें कि उत्तराखंड सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया है. ये बिल आजादी के बाद किसी भी राज्य में पहला ऐसा कदम है, जिसके बाद अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी इसी तरह का कानून बनाया जा सकता है. इस बिल में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के छोटे आदिवासी समुदाय को प्रस्तावित कानून से छूट दी गई है. इस बिल में लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है.

बता दें कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आने वाला 192 पेज का समान नागरिक संहिता बिल भाजपा के वैचारिक एजेंडे का एक महत्वपूर्ण बिंदु है, जिसमें सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और उत्तराधिकर पर एक समान कानून बनाने की बात प्रस्तावित है. चाहे वे किसी भी धर्म के हों.

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *