देहरादून। समान नागरिक संहिता का मुद्दा लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए बड़ा चुनावी शस्त्र बनने जा रहा है। चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड के बहाने देश में समान नागरिक संहिता को लेकर बहस प्रारंभ हो चुकी है। इसे सिर्फ हिंदू मतों के ध्रुवीकरण से जोड़कर ही नहीं देखा जा रहा है, बल्कि मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग, विशेषकर महिलाएं समान नागरिक संहिता के पक्ष में दिखाई दे रही हैं।
तीन तलाक के बाद अल्पसंख्यक समुदाय में कुप्रथा से निजात दिलाने के लिए इस कदम को भाजपा अपने लिए अनुकूल मान रही है। समान नागरिक संहिता भाजपा के चुनावी एजेंडे के शीर्ष बिंदुओं में सम्मिलित रहा है। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता की दिशा में पहल कर सत्तारूढ़ पार्टी ने प्रदेश ही नहीं, देश में भी अपने एजेंडे को लेकर स्पष्ट संदेश दिया है।
2022 के चुनावों में किया था वादा
उत्तराखंड में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने की घोषणा कर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को चौंका दिया था। इस घोषणा के बाद चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, इसे लेकर कयास लगने लगे थे। विधानसभा चुनाव का परिणाम सामने आया और भाजपा को लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत मिला। इससे यह साबित हो गया कि मुख्यमंत्री धामी का यह दांव कारगर रहा। एजेंडे को चुनाव में मिली सफलता से भाजपा भी गदगद रही।
मात्र 20 महीने समिति ने सौंपी रिपोर्ट
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए धामी सरकार ने सधे अंदाज में कदम बढ़ाए। समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए जिन विशेषज्ञों को जिम्मेदारी सौंपी गई, उससे इस मुद्दे को लेकर सरकार की संजीदगी का ही पता चलता है। मात्र 20 महीने में विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी।
लोकसभा चुनाव में मुद्दा रहेगा यूसीसी
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश सरकार को मिली इस रिपोर्ट ने लोकसभा चुनाव में भी इस मुद्दे को हवा दे दी है। समान नागरिक संहिता का सीधा लाभ आधी आबादी को होना है। माना जा रहा है कि धर्म और लिंग भेदभाव से परे हर वर्ग, समुदाय की महिलाओं को मिलने वाले समान अधिकार से महिला सशक्तिकरण का नया युग तो प्रारंभ होगा ही, साथ में अब तक हिंदू मतों तक सीमित रही भाजपा अब मुस्लिम समुदाय की आधी आबादी यानी महिलाओं को रिझाने के रूप में इसका लाभ लेती दिखाई पड़ सकती है। लोकसभा चुनाव से पहले इस संहिता को लागू करने के प्रयासों के राजनीतिक निहितार्थ कुछ यही संकेत दे रहे हैं।
उत्तराखंड के साथ-साथ कई राज्यों में आ सकता है यूसीसी
देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद यह पहली बार होगा, जब मुस्लिम समाज की महिलाओं को इस कानून के माध्यम से कुप्रथाओं से निजात मिल सकती है। यही कारण है कि उत्तराखंड की इस पहल का दायरा आने वाले समय में कई राज्यों तक बढ़ सकता है। विशेष रूप से भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असोम जैसे राज्य इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। दूसरी ओर, गैर भाजपा शासित राज्यों पर समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर दबाव बनेगा।