न्यूज़ डेस्क : किन्नर, जो ना पुरूष हैं और ना ही औरत. ईश्वर की बनायी गई इस खास मूरत के बारे में कई ऐसी बातें हैं. जो आप और हम नहीं जानते. जिनमें से एक है किन्नरों की शादी, जो सिर्फ एक रात की होती है. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस दौरान ना सिर्फ शादी के सारी रस्में निभाई जाती है बल्कि धूमधाम से जश्न भी मनाया जाता है. दरअसल अर्जुन और नाग कन्या उलूपी की संतान इरावन को किन्नर भगवान मानते हैं और इन्ही से शादी कर मगंलसूत्र पहनते हैं. इरावन को अरावन भगवान के नाम से भी जाना जाता है. किन्नरों की शादी का ये जश्न तामिलनाडु के कूवगाम में होता है.
हर साल तमिल नववर्ष पर पहली पूर्णिमा से किन्नरों के विवाह का उत्सव शुरू होता है जो कि 18 दिनों तक चलता है. उत्सव के आखिरी दिन किन्नरों की शादी होती है. पूरे सोलह श्रृंगार में सजे धजे किन्नर पुरोहित के हाथ से भगवान इरावन के नाम का मगंलसूत्र पहन लेते हैं. ये शादी सिर्फ एक रात की होती है. शादी के अगले ही दिन इरावन भगवान की मूर्ति को शहर में घुमाया जाता है और फिर मिलकर उसे तोड़ दिया जाता है. इसके बाद सभी किन्नर सोलह श्रृंगार उतार फेंकते हैं और विधवा होने का विलाप करने लगते हैं.
माना जाता है कि महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने मां काली की पूजा की थी. इस पूजा में एक राजकुमार की बलि होनी जरूरी थी. कोई भी राजकुमार आगे नहीं आया तो फिर इरावन (अर्जुन के पुत्र) बलि के लिए तैयार हुए. लेकिन पहले शर्त रखी कि वो बिना शादी किए बलि नहीं चढ़ेगा. उस वक्त पांडवों को ये समझ नहीं आया की कौन सी राजकुमारी इरावन से विवाह को मानेगी क्योंकि जो भी विवाह करेगी अगले दिन विधवा हो जाएगी. ऐसे में श्रीकृष्ण ने रास्ता दिखाया. श्रीकृष्ण खुद मोहिनी रूप धरकर आ गये और इरावन से विवाह कर लिया. अगले दिन इरावन की बलि हुई और श्रीकृष्ण ने विधवा बनकर विलाप किया. बस तभी से किन्नर इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं और खुद को एक दिन की सुहागिन कर अगले दिन विधवा हो जाते हैं.
Source : “Zee News”