न्यूज़ डेस्क: 20 जून से भगवान जगन्नाथ यात्रा की शुरुआत होगी. हिंदू कलेंडर के अनुसार शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है. 10 दिनों के इस उत्सव के बाद शुक्ल पक्ष की ग्यारस पर महोत्सव और रथयात्रा का समाप्त होती है. यात्रा को देखने और भगवान का दर्शन करने लाखों लोग पहुंचते हैं. हिंदू धर्म में माना जाता है कि भगवान अपने भक्तों के वश में होते हैं, लेकिन भक्ति अनन्य होनी चाहिए. वहीं अनन्य भक्ति जो कृष्ण और गोपियों के बीच थी. इसी धारणा के साथ ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ को ठंडे पानी से पहले नहलाया जाता है.
नहाने के बाद ये माना जाता है कि उन्हे बुखार आ गया है. फिर 15 दिन तक भगवान जगन्नाथ को एकांत में एक विशेष कक्ष में रखा जाता है. जहां एक डॉक्टर या वैद्य और सेवक उनका ध्यान रखता है. इस क्रिया को अनवसर कहा जाता है.
भगवान को फलों का रस, औषधियां और दलिये का भोग लगता है.
फिर भगवान जगन्नाथ स्वस्थ हो जाते हैं और रथ पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देते हैं. भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पूरी दुनिया में अनूठी है.जिसे देखने दूर दूर से लाखों लोग आते हैं. वैसे भगवान जगन्नाथ की यात्रा से जुड़ी कुछ और रोचक कहानियां भी हैं.
जैसे कृष्ण की बहन सुभद्रा मायके आती हैं और अपने भाइयों से शहर घूमने की इच्छा बताती है. तब कृष्ण, बलराम, सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर शहर भर में घूमते हैं.
वहीं कुछ लोग मानते हैं कि गुंडीचा मंदिर में स्थित देवी कृष्ण की मौसी हैं, श्रीकृष्ण, बलराम ,सुभद्रा को आमंत्रित करती है. अपनी मौसी के घर 10 दिन के लिए सभी भगवान जाते हैं.
एक कहानी ये हैं कि श्रीकृष्ण के मामा कंस उन्हें मथुरा बुलाते हैं, जिसके लिये गोकुल में सारथि के साथ रथ भिजवाता जाता है. फिर श्रीकृष्ण अपने भाई बहन के साथ रथ पर मथुरा जाते हैं.
कुछ लोग मानते हैं कि श्री कृष्ण कंस का वध करके बलराम के साथ अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए मथुरा में रथ यात्रा करते हैं. मान्यता ये भी है कि कृष्ण की रानियां माता रोहिणी से उनकी रासलीला सुना रही होती है.
लेकिन माता रोहिणी सुभद्रा को ये नहीं सुनाना चाहती . इसलिए वो सुभद्रा को कृष्ण, बलराम के साथ रथ यात्रा पर भेए भेज देती हैं फिर नारदजी प्रकट होते है, तीनों को एक साथ देख ये प्रार्थना करते हैं कि इन तीनों के ऐसे ही दर्शन हर साल हो. उसकी ये प्रार्थना भगवान पूरी करते हैं.