गांधीनगर: भारत देश को उसकी संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां हर राज्य में अलग अलग रंग देखने को मिलते हैं. देश में कई तरह की जनजातियां रहती हैं. हर किसी का रहन सहन एक दम अलग है. इनके रहने से लेकर विवाह तक के तरीके बिल्कुल अलग हैं. समाज में शादी का विशेष महत्व होता है. हर किसी धर्म की अपनी प्रथाएं और रस्में हैं. कहीं 4 फेरों में शादी हो जाती है तो कहीं सात. वहीं कहीं लड़का घोड़ी पर चढ़कर आता है तो कहीं शादी में लड़का जाता ही नहीं है. ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है गुजरात के आदिवासी इलाकों की जहा दूल्हा अपनी ही बारात में नहीं जाता है.
अपनी ही शादी में नहीं जाता है दूल्हा-
हम बात कर रहे हैं गुजरात के छोटा उदेपुर की जहां अपनी ही शादी में दूल्हा नहीं जाता है. यहां के तीन गांव सुरखेड़ा, अंबाला और सनाड़ा में रहने वाले राठवा समाज की शादियों में दूल्हा गायब रहता है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर बिना दूल्हे के शादी कैसे होती होती तो चलिए हम आपको बताते हैं. दरअसल में दूल्हे के परिवार की कोई और कुंवारी कन्या दूल्हे की ओर से जाती है.
बहन लाती है दुल्हन-
भले ही शादी में दूल्हा न जाता हो, लेकिन वो शेरवानी पहनता है, साफा भी धारण करता है, तलवार लेकर तैयार होता है, लेकिन वो घर पर अपनी मां के साथ रहता है.नउसकी बहन दुल्हन के दरवाजे पहुंचती है, उससे शादी करती है और उसे लेकर घर वापस आती है.
बहन लेती है फेरे-
दूल्हे की बहन भी एक दुल्हन की तरह सजती है और ऋंगार करती है. इसके साथ ही शादी के दौरान दोनों की वरमाला होती है जिसमें दुल्हन अपनी ननद को माला पहनाती है और ननद अपनी भाभी को. इतना ही शादी में फेरे भी लिए जाते हैं. अग्नि को साक्षी मानकर दोनों फेरे लेती हैं.
क्यों है ये प्रथा-
इस रिवाज के पीछे बहुत बड़े कारण को लेकर बताया जाता है कि इस समाज के लोगों का कहना है कि ये परंपरा करीब 300 साल पुरानी है. अंबाला, सूरखेडा और सनाडा गांव के आराध्य देव भरमादेव और खूनपावा हैं. ये आदिवासी समाज के आराध्य देव भी हैं. ऐसी मान्यता है कि भरमादेव कुंवारे देव हैं. इसलिए अंबाला, सूरखेडा और सनाडा गांव का कोई लड़का बारात लेकर जाएगा, तो उसे देव का कोपभाजक बनना होता है. यहां पर रिवाज असल तौर पर भगवान के कोप से बचने के लिए ग्रामीणों द्वारा अपनाया जाता है.
ससुराल जाकर दोबारा होती है शादी-
बहन के भाभी को घर लाने के बाद ससुराल में लड़के और लड़की की दोबारा शादी कराई जाती है. दुल्हन को दूल्हे के साथ वरमाला से लेकर फेरे तक सारी रस्में दोबारा करनी होती हैं. कहते हैं कि शादी के लिए दूल्हे की बहन का कुंवारा होना जरूरी है. ऐसे में यदि किसी की बहन नहीं है तो वो तो चचेरी, ममेरी बहन की मदद ले सकता है.