बीजेपी से हाथ मिलाने की अटकलों के बीच नीतीश से क्यों मिले लालू ? 25 मिनट तक चली मुलाकात के क्या हैं मायने ?

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पटना:  बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार से आज आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद ने मुलाकात की। नीतीश कुमार के बीजेपी से हाथ मिलाने की अटकलें तेज होने के बाद दोनों नेताओं की यह पहली मुलाकात मानी जा रही है। सीएम आवास पर करीब 25 मिनट तक दोनों नेताओं के बीच यह मुलाकात चली। माना जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A और सीट शेयरिंग के मुद्दे पर दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई। हालांकि इस मुलाकात के संबंध में दोनों ही दलों की तरफ अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

नीतीश कुमार के एक बार फिर से पलटने की अटकलों के बीच लालू का खुद सीएम आवास जाकर नीतीश से मिलना सियासी गलियारों में चर्चा का विषय है। क्योंकि नीतीश कुमार को एनडीए में आने को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है।ऐसे में प्रदेश में बयानबाजी भी खूब हो रही है। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा “जनता दल (यूनाइटेड) को कौन बुला रहा है? यह नीतीश कुमार की पार्टी है इसलिए यह उनका कॉस है। हमने उन्हें ‘पलटू कुमार’ घोषित कर दिया है। लालू यादव उन्हें पलटू कुमार कहते थे…यह नीतीश कुमार के प्रति बीजेपी का एहसान है। नीतीश पहले सीएम नहीं थे, जब बीजेपी के साथ आए तो सीएम बने। उन्होंने बीजेपी के लिए कोई एहसान नहीं किया है।”

वहीं JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन(ललन) सिंह ने कहा, “भाजपा का काम भ्रम फैलाना है। मीडिया में रोज चलता है कि नीतीश कुमार की भाजपा से नजदीकियां बढ़ रही है। भाजपा देखने के लायक भी पार्टी नहीं है। भाजपा का अस्तित्व क्या है? भाजपा ने देश की जनता से जो वादा किया उसमें कौन सा वादा पूरा किया?

कहा यह भी जाता है कि नीतीश कुमार कब क्या निर्णय लेंगे, यह किसी को पता नहीं है। हाल के दिनों में नीतीश कुमार की राजनीतिक गतिविधियों पर गौर करें, उनकी नजदीकियां भाजपा के साथ दिखती हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के मौके पर उनकी प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दिए जाने के बाद इस बात को और बल मिला कि उनकी नजदीकियां भाजपा से बढ़ रही है। नीतीश हालांकि सार्वजनिक तौर पर इससे इनकार भी करते रहे हैं। वैसे, नीतीश कुमार के ऐसे बयानों पर किसी को विश्वास नहीं रहता, क्योंकि पाला बदलने के पहले तक वे अपने निर्णय का खुलासा नहीं करते रहे हैं।

सियासी हवा के रुख अंदाजा लगा पाना बड़े-बड़े राजनीतिक दिग्गजों के लिए मुश्किल काम है। और उसमें जब नीतीश जैसे नेता सामने हों तो उनके मन की थाह लेना आसान नहीं है। शायद इसलिए भी लालू नीतीश कुमार से मिलने गए हों। क्योंकि पिछली बार भी जब आरजेडी से उनका मोह भंग हुआ था तो उन्होंने अचानक से आरजेडी का साथ छोड़ने का ऐलान किया था। ठीक इसी तरह वे बीजेपी से भी अलग हुए थे। बिल्कुल आखिरी वक्त तक किसी को उन्होंने यह पता नहीं चलने दिया कि उनके मन में क्या चल रहा है। लालू ने नीतीश से मिलकर शायद यह तसल्ली पाने की कोशिश की होगी कि नीतीश उनके साथ हैं। क्योंकि इंडिया गठबंधन में नीतीश के नेतृत्व को लेकर अभी तक कोई सकारात्मक संकेत सामने नहीं आया है। जल्दबाजी में नीतीश तेजस्वी के बिहार में सीएम की कुर्सी छोड़ना भी नहीं चाहते हैं। वहीं लालू की पूरी कोशिश है कि नीतीश जल्द से जल्द दिल्ली में बैठें और तेजस्वी बिहार के सीएम बनें। इसलिए नीतीश और लालू की मुलाकात इंडिया गठबंधन और सीट शेयरिंग से अलग भी कुछ संकेत देती है।

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