AAP ने वन नेशन वन इलेक्शन का किया विरोध, कहा- ‘इससे बढ़ेगी खरीद-फरोख्त…’

राज्यों से खबर

नई दिल्ली: दिल्ली और पंजाब की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी ने एक देश एक चुनाव का विरोध किया है. उन्होंने शनिवार को वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे को लेकर एक उच्च स्तरीय समिति को अपनी सिफारिशें भेजीं हैं. आप के महासचिव पंकज गुप्ता ने उच्च स्तरीय समिति के सचिव नितेन चंद्र को संबोधित करते हुए 13 पन्नों का सिफारिश पत्र लिखा है. आप ने अपने पत्र के माध्यम से एक देश एक चुनाव का कड़ा विरोध किया है और कहा कि ये लोकतंत्र के विचार, संविधान की बुनियादी संरचना को नुकसान पहुंचाएगा. इससे सदस्यों की खुली खरीद-फरोख्त को भी बढ़ावा मिलेगा.

आप ने की ये सिफारिश

आप ने उच्च स्तरीय समिति से को पत्र के माध्यम से सिफारिश करते हुए लिखा, हम एक देश एक चुनाव के विचार का पुरजोर विरोध करते हैं. वन नेशन वन इलेक्शन संसदीय लोकतंत्र के विचार, संविधान की बुनियादी संरचना और देश की संघीय राजनीति को नुकसान पहुंचाएगा. वन नेशन वन इलेक्शन त्रिशंकु विधायिका से निपटने में असमर्थ है, दल-बदल और विधायकों/ सांसदों की खुली खरीद-फरोख्त के चलन को फिर से बढ़ा देगा.

आप ने आगे कहा कि एक साथ चुनाव कराने से जो लागत बचाने की कोशिश की जा रही है. वह भारत सरकार के वार्षिक बजट का मात्र 0.1 प्रतिशत ही है. संकीर्ण वित्तीय लाभ और प्रशासनिक सुविधा के लिए संविधान, लोकतंत्र के सिद्धांतों का बलिदान नहीं दिया जा सकता.

ओवैसी ने भी किया विरोध

आप से पहले एक देश एक इलेक्शन के विरोध में हैदराबाद से सांसद और AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने उच्च स्तरीय समिति को पत्र लिखकर कहा,  ‘न तो संसदीय स्थायी समिति, नीति आयोग या विधि आयोग ने यह प्रदर्शित किया है कि ऐसा कदम उठाने की आवश्यकता क्यों है. इसके बजाय चर्चा इस बात पर केंद्रित है कि इसे कैसे लागू किया जा सकता है.  दुर्भाग्य से, एचएलसी के संदर्भ की शर्तों में भी वही दोष मौजूद है.

क्या है वन नेशन वन इलेक्शन

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने से है. इसका अर्थ है कि पूरे भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे और दोनों के लिए एक ही वक्त के आसपास मतदान होगा. पर आज की बात करें तो विधानसभा और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग होते हैं.

2019 के आम चुनाव में हुआ था इतना खर्च

एक साथ चुनाव कराने का एक प्रमुख कारण अलग-अलग चुनावों में होने वाली लागत में कटौती करना होगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस राशि में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों द्वारा खर्च किया गया खर्च और चुनाव कराने के लिए भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा किया गया खर्च शामिल है.

एक साथ चुनाव कराने से केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी. वर्तमान में जब भी चुनाव होने वाले होते हैं तो आदर्श आचार संहिता लागू कर दी जाती है, जिससे दौरान होने वाले लोक कल्याण की नई परियोजनाओं के शुभारंभ पर रोक  लगा दी जाती है. इसके अलावा विधि आयोग ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से मतदाता मतदान में वृद्धि होगी, क्योंकि उनके लिए एक बार में वोट डालना अधिक सुविधाजनक होगा.

पहले एक साथ होते थे चुनाव

बता दें कि 1967 तक भारत में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते थे, लेकिन साल 1968-69 में कुछ विधानसभाएं और 1970 में लोकसभा समय से पहले भंग होने के बाद चुनाव अलग-अलग होने लगे थे. इसके बाद साल 1983 में चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन तब की तत्कालीन सरकार ने इसे नकार दिया.

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *