जरूरत हुई तो सुनवाई के लिए पूरी रात बैठेंगे… वोटिंग पर्सेंट बढ़ने पर ‘सुप्रीम’ सुनवाई, जानिए क्या दी गईं दलीलें

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की अर्जी पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। इस अर्जी में मतदान के कुछ दिनों बाद फाइनल वोटिंग पर्सेंट में हुई बढ़ोतरी का हवाला देते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के संभावित रिप्लेसमेंट की आशंका जताई गई है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने चुनाव आयोग को 24 मई तक एडीआर की अर्जी पर अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। इस याचिका पर सोमवार से शुरू हो रहे कोर्ट के ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान वैकेशन बेंच सुनवाई करेगी। हालांकि, एडीआर की याचिका पर चुनाव आयोग के वकील ने सवाल उठाए थे। इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो हम मामले की सुनवाई के लिए पूरी रात बैठेंगे।

फाइनल वोटिंग पर्सेंट के आंकड़ों पर घमासान

एडीआर ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग को मतदान खत्म होने के 48 घंटे में वोटिंग के आंकड़े प्रकाशित करने का निर्देश देने की मांग की है। जब पीठ ने पूछा कि ‘वेबसाइट पर मतदान के आंकड़े डालने में क्या कठिनाई है’, तो चुनाव आयोग के वकील ने इस पर जवाब दिया। उन्होंने कहा कि ‘इसमें समय लगता है क्योंकि हमें बहुत सारा डेटा एकत्र करना होता है।’ चीफ जस्टिस ने कहा कि चुनाव आयोग को याचिका पर जवाब देने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए। बेंच ने इसे चुनाव के छठे चरण से एक दिन पहले 24 मई को वेकेशन बेंच के सामने सुनवाई के लिए लिस्ट किया। इससे पहले 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एडीआर की बैलेट पेपर पर वापसी और ईवीएम पर संदेह जताए जाने संबंधी याचिका खारिज कर दी थी।

ADR ने वोटिंग आंकड़ों पर उठाए सवाल

एडीआर की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर चुनाव आयोग के वकील ने सवाल खड़े किए। इलेक्शन कमीशन के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि आयोग के सीनियर अधिकारियों ने पिछली बार दाखिल याचिका पर एनजीओ के वकील प्रशांत भूषण की ओर से व्यक्त किए गए हर संदेह का जवाब दिया था। उस याचिका में चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह व्यक्त किया गया था और बैलेट पेपर से वोटिंग की अपील की गई थी। निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने याचिका में बिल्कुल गलत आरोप लगाए हैं। इसके अलावा, जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ के हालिया फैसले में उन मुद्दों से निपटाया गया है, जो वर्तमान मामले का भी हिस्सा हैं।

चुनाव आयोग के वकील नई याचिका का किया विरोध

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने चुनाव आयोग के अधिकारियों के साथ कई बार बातचीत के बाद 26 अप्रैल को बैलेट पेपर को फिर से अपनाने और वीवीपैट के साथ ईवीएम से हुई वोटिंग के 100 फीसदी मिलान की याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट कहा था कि ईवीएम भरोसेमंद हैं। अब एडीआर की नई याचिका पर चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह ने कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि प्रशांत भूषण को आवेदन के जरिए कोर्ट में कुछ भी लाने का मन है, वह भी 2019 से लंबित याचिका में, अदालत को इस पर विचार नहीं करना चाहिए। ये चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने के प्रयास हैं, जिसके चार फेज सुचारू रूप से पूरे हो चुके हैं। प्रशांत भूषण ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि मतदाता वोटिंग डेटा से संबंधित मुद्दा पिछली याचिका का हिस्सा नहीं था।

जरूरत हुई तो सुनवाई के लिए पूरी रात बैठेंगे: SC

सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने प्रशांत भूषण को तरजीह दिए जाने के आरोप पर आपत्ति जताई और कहा, ‘यह गलत आरोप है। अगर हमें लगता है कि किसी मुद्दे पर न्यायालय के ध्यान और हस्तक्षेप की आवश्यकता है, तो हम ऐसा करेंगे। चाहे कोई भी इसे कोर्ट के समक्ष लाए। अगर जरूरत पड़ी तो हम मामले की सुनवाई के लिए पूरी रात बैठेंगे।’ वास्तव में, पीठ ने निर्धारित कार्य समय समाप्त होने के कुछ घंटे बाद शाम 6.10 बजे एडीआर की इस याचिका पर सुनवाई की।

26 अप्रैल को, जस्टिस खन्ना और जस्टिस दत्ता की बेंच ने कहा था, ‘हमारे विचार से, ईवीएम सरल, सुरक्षित और यूजर के अनुकूल हैं। वोटर, कैंडिडेट, उनके प्रतिनिधि और चुनाव आयोग के अधिकारी ईवीएम सिस्टम की बारीकियों से अवगत हैं। वीवीपैट सिस्टम को शामिल करने से वोट सत्यापन का सिद्धांत मजबूत होता है। इससे चुनावी प्रक्रिया की समग्र जवाबदेही बढ़ जाती है। जस्टिस खन्ना और जस्टिस दत्ता ने फॉर्म 17सी के तहत वोटिंग पर्सेंट की काउंटिंग और प्रकाशन की प्रक्रिया का भी विवरण दिया था।

ऐसे कोर्ट पहुंचा वोटिंग पर्सेंट का मामला

कांग्रेस, टीएमसी और सीपीएम की ओर से चुनाव आयोग को लिखे गए पत्र के तुरंत बाद एडीआर ने एक आवेदन के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। इस याचिका में चल रहे चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए फाइनल वोट काउंटिंग के आंकड़ों को जारी करने में असामान्य रूप से देरी का आरोप लगाया गया था। एडीआर ने आरोप लगाया कि 19 अप्रैल को हुई वोटिंग के फाइनल आंकड़े 30 अप्रैल को प्रकाशित किए गए। 26 अप्रैल को दूसरे चरण के लिए मतदान हुई तो उसके फाइनल आंकड़े 30 अप्रैल को प्रकाशित किए गए। इस तरह से पहले फेज की वोटिंग का फाइनल डेटा 11 दिन बाद और दूसरे चरण की वोटिंग के अंतिम आंकड़े 4 दिन बाद जारी किए गए।

एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट से की ये अपील

एडीआर ने कहा, ‘चुनाव आयोग की ओर 30 अप्रैल की प्रेस रिलीज में वोटिंग के फाइनल आंकड़ों की तुलना करें तो मतदान के दिन आए आंकड़ों से ये लगभग 5-6 फीसदी ज्यादा है। फाइनल वोटिंग के आंकड़ों को जारी करने में अत्यधिक देरी, फिर 30 अप्रैल को जारी चुनाव आयोग के प्रेस नोट में असामान्य रूप से 5 फीसदी से ज्यादा का अंतर सवाल खड़े करता है। एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि इन आशंकाओं को दूर किया जाना चाहिए। मतदाताओं का विश्वास बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह अपनी वेबसाइट पर सभी मतदान केंद्रों के फार्म 17सी भाग I (रिकॉर्ड किए गए मतों का लेखा-जोखा) की स्कैन की हुई कॉपियां प्रदर्शित करे। इसमें मतदान समाप्ति के 48 घंटे के भीतर डाले गए वोटों के सर्टिफाइड आंकड़े हों।

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