नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आने के बाद अब उन दलों ने आत्मावलोकन शुरू किया है, जिनका प्रदर्शन उनकी उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा है. इसमें भाजपा भी शामिल है. पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिला था, लेकिन इस बार उसके बहुमत से 32 कम सांसद जीते हैं. भाजपा ने ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा दिया था, लेकिन वह 240 सीटें ही जीत सकी. उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 292 सीटों के साथ बहुमत जरूर प्राप्त हुआ है. लेकिन इस बहुमत में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और नीतीश कुमार की जदयू का बड़ा योगदान है. दोनों दलों ने क्रमश: 16 और 12 सीटें जीती हैं.
बीजेपी नेताओं का आकलन है कि उम्मीद से खराब प्रदर्शन के पीछे जातीय समीकरणों को ठीक से न साध पाना रहा है. उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बीजेपी को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, जहां पिछले चार चुनावों में बहुत सावधानी से बनाया गया इंद्रधनुषी जातीय समीकरण इस लोकसभा चुनाव में बिखर गया. बीजेपी का अनुमान है कि इस बार न केवल गैर-यादव ओबीसी वोट बैंक का कुछ हिस्सा बीजेपी से छिटका, बल्कि गैर-जाटव दलित वोटर भी खिसकर विपक्षी गठबंधन के पाले में गए. गैर-यादव ओबीस में खटीक और कुर्मी वोटों का पलायन खासतौर से रेखांकित किया जा रहा है.
संविधान बदलने का विपक्ष का दुष्प्रचार बीजेपी पर भारी
वहीं मायावती की बीएसपी के दौड़ से पूरी तरह बाहर हो जाने के कारण दलित भी इस बार कांग्रेस-सपा के साथ चले गए. संविधान बदलने का विपक्ष का दुष्प्रचार बीजेपी पर भारी पड़ा और पार्टी ने इसका सही से प्रतिवाद नहीं किया. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और हरियाणा में बीजेपी को झटका लगा है. इन चारों राज्यों में बीजेपी की सरकार है. लेकिन सरकार और संगठन में तालमेल की कमी इन चारों राज्यों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन की बड़ी वजह बतायी जा रही है. पार्टी के कार्यकर्ता सरकार में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं और कई मौजूदा सांसदों को दोबारा टिकट देना भी एक गलत फैसला साबित हुआ.
ओडिशा में BJP से गठबंधन नहीं करना रहा फायदेमंद
बीजेपी को जिन चार राज्यों ने डूबने से बचाया वे हैं- मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा और कर्नाटक. इनमें मध्य प्रदेश और गुजरात में बीजेपी का जमीनी संगठन बहुत मजबूत है. पार्टी को इस बार भी इसका फायदा मिला. कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा. यहां बीएस येदयुरप्पा खेमे के हाथों में फिर कमान सौंपने का बीजेपी को लाभ मिला. बीजेपी नेतृत्व विधानसभा चुनाव के नतीजों के येदयुरप्पा पर भरोसा करते हुए जेडीएस के साथ गठबंधन करना फायदेमंद रहा. ओडिशा में नवीन पटनायक से गठबंधन नहीं करने का बीजेपी का फैसला सही साबित हुआ.
UP-बिहार में RSS स्वयंसेवकों की उदासीनता पड़ी भारी
आरएसएस कार्यकर्ताओं की उदासीनता यूपी और बिहार में बीजेपी पर भारी पड़ी. माना जा रहा है कि चुनावों के बीच बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का आरएसएस को लेकर दिया गया बयान स्वयंसेवकों को रास नहीं आया. बाहरी नेताओं की फौज को बीजेपी में लाना और उन्हें टिकट देना भी संघ को पसंद नहीं आया. महाराष्ट्र इसका बड़ा उदाहरण है. बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी इसका एक कारण है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भाजपा ने इस बार बड़ी संख्या में अपने प्रत्याशियों को रिपीट किया. इसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ा.