नई दिल्ली: उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं से हड़कंप और भय का माहौल है. जमीन फट रही है, करीब 603 घरों में दरारें आ चुकी हैं और जोशीमठ के लोग डरे हुए हैं. इस मामले को लेकर हिमालयन-भू विज्ञान पर 35 साल से ज्यादा समय से शोध कर रहे एचएनबी गढ़वाल विश्विद्यालय के प्रोफेसर यशपाल सुंदरियाल ने कई अहम बातें बताई हैं. उन्होंने कुछ ऐसे फैक्ट बताए हैं जो कि काफी गंभीर हैं.
भूस्खलन के मलबे पर बने हैं गांव और शहर
प्रोफेसर यशपाल बताते हैं, “पहाड़ के ज्यादातर गांव और शहर भूस्खलन के मलबे या स्लोप पर बने हैं. जिस तेजी से जोशीमठ में विकास कार्य हो रहे हैं वो कई सालों से समस्या का कारण बने हुए हैं. हालिय घटनाओं को देखते हुए सरकार को जागना होगा और एक्शन मोड में आना पड़ेगा. जोशीमठ की सतह में चट्टान कम और मिट्टी ज्यादा है. इसके साथ ही खराब पानी प्रबंधन और सीवर प्रबंधन की वजह से होने वाले पानी के रिसाव के कारण जोशीमठ की नींव कमजोर हो गई है.
नींव में दरारें आना स्वाभाविक है
प्रोफेसर यशपाल आगे कहते हैं, “एनटीपीसी के विष्णु गरुड़ प्रोजेक्ट में टनल में विस्फोट किए जा रहे थे. ये विस्फोट इतने शक्तिशाली हैं कि आर्टिफिशियल भूकंप पैदा कर रहे हैं. हिलाजा एक स्लोप पर बसे शहर की नींव में दरार आएंगी और स्वाभाविक है कि जमीन धंसेगी. इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्र स्लोप या भूस्खलन के मलबे पर बसे हैं.”
कारणों के साथ ही प्रोफेसर के कुछ सवाल
कारण बताने के साथ ही प्रोफेसर ने कुछ सवाल भी उठाए हैं. उनका कहना है कि जोशीमठ में इतनी ऊंचाई पर इमारतों को बनाने की स्वीकृति किसने दी. सरकारें मुआवजा देकर और विस्थापन कराकर इस समस्या से छुटकारा पाने की कोशिश करती हैं. मिश्र कमिटी की रिपोर्ट-1976 को अमल में क्यों नहीं लाया गया.
सरकार को नियमत तरीके से काम करना होगा
उन्होंने कहा कि तत्कलीन गढ़वाल कमिश्नर जीसी मिश्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जोशीमठ में बड़े कंस्ट्रक्शन नहीं होने चाहिए. इसके बावजूद यहां एनटीपीसी और हेलंग-मालवाड़ी बायपास बन रहे हैं. उत्तराखंड सरकार को नियमत तरीके से काम करना होगा. स्थिति खराब होने के बाद एक्शन में आने की आदत बदलनी पड़ेगी.
इन क्षेत्रों में फैब्रिकेटेड मकान बनने चाहिए
प्रोफेसर यशपाल ने कहा कि यहां टाउन प्लानिंग नहीं हुई है. हम बहुत नाजुक दौर में हैं. जोशीमठ को अभी भी बचाया जा सकता है. इन क्षेत्रों में फैब्रिकेटेड मकान ही बनने चाहिए. बताया कि 1946 में जाने-माने भू-वैज्ञानिक औगुस्तों गैंसर ने अपने शोध में कहा था कि जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा हुआ एक शहर है.
उधर, आपदा सचिव डॉ. रंजीत सिन्हा ने इस बात को नकारा है कि विकास कार्य जोशमठ में आपदा की वजह हैं. अभी तक एनटीपीसी टनल निर्माण और हेलांग मारवाड़ी बाईपास निर्माण की वजह से जोशीमठ में जमीन और घरों में दरारे आ रही हैं. इस बात को लेकर अभी तक कोई साक्ष्य सामने नहीं आए हैं. हालांकि, आपदा प्रबंधन विभाग लगातार इसको लेकर जांच कर रहा है. डॉ. सिन्हा ने इस बात को माना है कि जोशीमठ एक नाजुक सतह पर बसा हुआ शहर है, जहां ड्रेनेज की समस्या को सुलझाना सबसे पहली प्राथमिकता है. उसके साथ ही सबसे बड़ा टास्क और मिशन लोगों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने का है.
डॉ. सिन्हा ने इस बात को भी माना कि जोशीमठ में 12 मीटर से ऊपर की इमारतें नहीं बननी चाहिए थीं. इसको लेकर सीबीआरआई रुड़की के साथ आपदा प्रबंधन विभाग गहन जांच करेगा और कार्रवाई भी करेगा.
वहीं, उत्तरकाशी में एक सम्मेलन के दौरान उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि उत्तराखंड में बड़ी परियोजनाओं की जरूरत नहीं है क्योंकि उत्तराखंड एक संवेदनशील प्रदेश है. यहां के पहाड़ बहुत संवेदनशील हैं और बड़ी परियोजनाओं से पहाड़ों में तबाही आती है.
Source : “आज तक”